घाटी में कभी गूंजे थे यहा क्या चलेगा-निजाम-ए-मुस्तफा के नारे,अब मस्जिदों में ही रही है अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की बाते
घाटी में कभी गूंजे थे यहां क्या चलेगा- निजाम-ए-मुस्तफा के नारे,अब मस्जिदों में हो रही है अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की बाते


15 Oct 2021 |  336



जम्मू-कश्मीर।कश्मीर घाटी में 90 के दशक में जिन मस्जिदों से यहां क्या चलेगा- निजाम-ए-मुस्तफा के नारे गूंजते थे।उन्हीं मस्जिदों से आज बहुसंख्यक समुदाय के लोगों द्वारा अल्पसंख्यकों को खासतौर पर कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा का भरपूर आश्वासन दिये जा रहे है।कश्मीरी पंडितों से घर न छोड़ने की अपीलें की जा रही है। कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू ने बहुसंख्यक समुदाय के धर्म गुरुओं को एक संदेशा भेजा है।इस संदेश में मस्जिदों के आलिमों और मौलवियों से अल्पसंख्यक समुदाय को सुरक्षा का अहसास कराने की गुजारिश की गई।



टिक्कू कहते है कि उनके द्वारा की गई अपील का भारी असर हुआ है।श्रीनगर घाटी की करीब आठ मस्जिदों से पिछले शुक्रवार से अभी तक अल्पसंख्यकों को सुरक्षा के आश्वासन दिए गए है।लेकिन जहां भी कश्मीरी पंडित, सिख या फिर प्रवासी मजदूर रह रहे हैं,वहां की मस्जिदों से ऐसी अपीलें की जाती हैं तो शायद अगले सप्ताह से स्थिति सामान्य होना शुरू हो जाएगी।



टिंकू कहते है कि मैं हमेशा ये कहता हूं कि मेरी सुरक्षा की जरूरत नहीं है। मुझे सामाजिक सुरक्षा चाहिए जो पिछले 32 वर्षों से यहां मिल रही थी,लेकिन 32 वर्ष के बाद भी अगर उनके पड़ोसी या अन्य लोग मुंह पर पट्टी बांधकर चुप्पी साध लिए हैं तो मुझे लगता है कि यहां के लोग यह नहीं चाहते कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोग यहां रहें।



टिक्कू कहते है कि उन्हें बहुसंख्यक समुदाय से सौ प्रतिशत प्रोत्साहन चाहिए। 2007 में जब पहली बार उनके संगठन द्वारा कई वर्षों बाद श्रीनगर में दशहरा मनाया, तब केवल उनके ही समुदाय के 100 लोग शामिल हुए थे, लेकिन जब 2009 में फिर से दशहरा मनाया गया तो करीब 35000 लोगों ने इसमें शामिल हुए।जिसमें से हमारे कुल 500 लोग थे। आज भी वैसा ही प्रोत्साहन चाहिए। 



टिंक्कू कहते है कि नागरिकों की हत्या के बाद पलायन कर गए परिवारों के बारे में उन्हें जो जानकारी है अभी तक करीब आठ परिवार यहां से निकले हैं,लेकिन उनमें से कई अस्थायी तौर पर गए हैं, जो जल्द वापस लौटेंगे। पुलिस की हेल्पलाइन को उन्होंने अच्छा कदम बताया।



ऑल पार्टी सिख को-ऑर्डिनेशन कमेटी के अध्यक्ष जगमोहन सिंह रैना ने भी इस हेल्पलाइन का स्वागत किया है, लेकिन कहा कि उन्हें नहीं लगता कि इसकी जरूरत थी। पुलिस के हेल्पलाइन नंबर से भी ज्यादा यहां के बहुसंख्यक लोगों की हेल्पलाइन को जरूरी मानते हैं।



रैना ने छट्टी सिंघपोरा और महजूर नगर के हत्याकांड का हवाला देते कहा कि ऐसी घटनाओं के बाद भी कश्मीर में बहुसंख्यक समुदाय के साथ लगाव काफी अच्छा रहा।



रैना ने कहा कि हेल्पलाइन केवल श्रीनगर और अन्य उन जगहों पर मदद दे सकती है, जहां नेटवर्क है, लेकिन सिख करीब 124 गांवों में रहते हैं, वहां तो केवल बहुसंख्यक ही हमारा सहारा हैं। उम्मीद करते हैं कि यह भाईचारा आगे भी कायम रहेगा। बहुसंख्यक समुदाय को गंभीरता से सोचना होगा कि भाईचारा कैसे कायम रखा जाए।


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