काशी करवत:मोक्ष पाने के लिए इस राजा ने खुद को चीर डाला आरे से,आइए जाने इसके बारे में
काशी करवत:मोक्ष पाने के लिए इस राजा ने खुद को चीर डाला आरे से,आइए जाने इसके बारे में




05 Nov 2021 |  342



ब्यूरो प्रेम शंकर मिश्र के साथ मंगला प्रसाद की खास रिपोर्ट



वाराणसी।आध्यात्मिक नगरी काशी संस्कृति और प्राचीन कथाओं की नगरी कही जाती है।बाबा भोले नाथ की नगरी काशी के कई बहुत सुप्रसिद्ध किस्से हैं,जिनके बारे में जान कर हर कोई हैरान हो जाता है।ऐसे ही एक किस्सों में काशी करवत है।काशी के मणिकर्णिका घाट पर स्थित काशी करवत को लेकर अलग-अलग किस्से मशहूर हैं।काशी करवत को लेकर लोगों द्वारा कहानियां कही जाती हैं।हकीकत से कही अधिक मणिकर्णिका घाट को लेकर अफवाहें भी खूब फैली हुई हैं।स्वराज सवेरा मणिकर्णिका घाट का एक-एक सच्च लोगों तक पहुंचाने का निर्णय किया है।

स्वराज सवेरा की टीम काशी की सकरी गलियों से होकर घाट पर पहुंची तो मणिकर्णिका घाट के सामने एक मंदिर को देखा ये मंदिर टेढ़ा था।इस मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव है।इस जगह के आस पास मौजूद लोग यही कह रहे थे कि ये मंदिर काशी करवत है।असल में लोग करवत और करवट को लेकर भी थोड़े असमंजस में दिखायी दिए।

स्वराज सवेरा की टीम जब मणिकर्णिका घाट के पास गुरूवार की देर रात में सच जानने की कोशिश कर रही थी तो उसी समय टीम ने एक व्यक्ति से काशी करवत को लेकर सवाल पूछा तो व्यक्ति ने सारी तस्वीरें साफ कर दी।

टीम को मणिकर्णिका घाट पर मौजूद एक व्यक्ति ने बताया कि पहली बात तो यह कि असल में ये काशी करवत है, करवट नहीं।दूसरी बात तिरछा वाला मंदिर काशी करवत नहीं, बल्कि रत्नेश्वर महादेव मंदिर है। काशी करवत नेपाली खपड़ा के पास है।वहां पर आप जाएंगे तो आपको सारी जानकारी मिलेगी।
काफी रात हो चुकी थी और मंदिर बंद हो चुका था। टीम ने निर्णय लिया कि शुक्रवार सुबह हम काशी करवत के इतिहास के पन्नों को पलटने के लिए वहां पहुंचेंगे।

शुक्रवार की सुबह स्वराज सवेरा की टीम मणिकर्णिका घाट की गलियों से होते हुए नेपाली खेड़ा पहुंची।टीम को नेपाली खेड़ा में एक दादा जी मिले और बताया कि इसी घर में काशी करवत मंदिर है।टीम मंदिर के अंदर पहुंची तो देखा कि मंदिर के अंदर ब्राह्मणों का एक समूह बैठा हुआ है।मंदिर के अंदर एक किनारे तरफ एक ब्राह्मण हुए बैठे थे।ब्राह्मण से जब उनका नाम पूछा तो अपना नाम गणेश शंकर उपाध्याय बताया।

टीम ने जब पंडित गणेश शंकर उपाध्याय से इस जगह के बारे में पूछा तो उपाध्याय ने बताया कि करवत हिंदी का शब्द है।उसका मतलब होता है आरा लकड़ी काटने वाले यंत्र को आरा कहते हैं।काशी मोक्ष प्राप्ति करने की नगरी है,मोक्ष प्राप्ति के लिए लोग पहले अपने प्राणों को दान किया करते थे।हमारे यहां शास्त्रों में और पुराणों में वर्णन है कि पूरे भारत वर्ष में सात मोक्ष पुरी हैं।

जब हमने उन जगहों के बारे में पूछा तो उपाध्याय ने बताया कि अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जैन), द्वारकापुरी ये सात जगह मोक्ष पुरी हैं।यहां पर लोग अलग-अलग तरह से अपने प्राण दान किया करते थे,जिसमें काशी की प्रधानता है।काशी की प्रधानता इसलिए है क्योंकि काशी में जीव मात्र को भगवान शिव मोक्ष प्रदान करते हैं।पहले के समय में लोग काशी में निवास नहीं करते थे और भी मोक्ष पुरी में निवास के साधन नहीं होते थे। काशी में भी निवास का साधन नहीं था।

टीम ने पंडित गणेश शंकर उपाध्याय से पूछा कि मंदिर का इतिहास क्या है और ये कबसे है तो उपाध्याय ने बताया कि ये मंदिर द्वापरकाल से है,जो आपने अभी नीचे दर्शन किया है उसी स्थान का नाम काशी करवत है।

उपाध्याय आगे बताते है कि काशी में मोक्ष के लिए लोग अपने प्राण दान किया करते थे।ये करवत की प्रथा द्वापरकाल से शुरू हुई है और मोरंग ध्वज कथा का वर्णन सत्य नारायण व्रत कथा में आया है।साधु नाम का जो वैश्य बनिया था सत्य नारायण व्रत कथा में उसका पुर्नजन्म हुआ तो वो मोरंग ध्वज नाम का राजा हुआ।मोरंग ध्वज बहुत सत्यवादी राजा थे और भगवान विष्णु के भक्त थे।भगवान श्रीकृष्ण के परीक्षा लेने पर मोरंग ध्वज ने अपने बच्चे का दाहिना अंग आरे से चीर करके भगवान श्रीकृष्ण को दान कर दिया था।भक्तमाल की कथा में भी ये वर्णन आता है।

भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होकर मोरंग ध्वज को दर्शन दिया और बच्चे को भी पुर्नजीवित कर मोरंग को आशीर्वाद दिया कि अब तुम्हारा जन्म नहीं हो तुमको मोक्ष मिले।ऐसे में मोक्ष प्राप्ति के लिए मोरंग ध्वज उसी आरे को लेकर काशी आए और काशी में खुद को चीर कर अपना प्राण दान कर दिया।वह जगह है, जिसे काशी करवत बोला जाता है।इस मंदिर में ये भीमा शंकर हैं।

उपाध्याय आगे बताते है कि भीमा शंकर काशी में 12 ज्योतिर्लिंगों का उद्भव भी द्वापरकाल में ही हुआ है। काशी खंड में स्कंद पुराण के अंतर्गत इसका वर्णन है। राजा दीवोदास को मोक्ष की प्राप्ति होने के बाद में भगवान शिव का काशी में जब पुर्नआगमन हुआ तो, भगवान शिव के पुर्नआगमन में उत्सव हुआ।इस उत्सव में सभी देवी-देवता यहां आए तो जितने भी सनातन धर्म में देवी देवताओं की जगह काशी में है। उसी समय द्वापरकाल में सप्त गोदावरी तीर्थ से भगवान भीमेश्वर काशी आए।इसी जगह पर भीमा शंकर के पास ही राजा मोरंग ध्वज ने करवत से अपने प्राणों को दान किया, इसीलिए इस स्थान को काशी करवत बोला गया।

पंडित गणेश शंकर उपाध्याय आगे बताते है कि भीमा शंकर भोग और मोक्ष दोनों के प्रदाता हैं।ऐसा वर्णन किया गया है कि काशी खंड में इनके दर्शन करने मात्र से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं। ये जीवित रहते हुए भोग और मृत्यु के उपरांत मोक्ष के प्रदाता हैं।ये जगह काशी में मोक्ष प्राप्ति के लिए इतनी प्रसिद्ध रही है कि काशी मोक्ष नगरी और काशी का मोक्ष स्थल प्राण दान करने की जो विधि थी वो इस जगह पर है।भीमेश्वर महादेव का शिवलिंग जमीन से करीब 25 फीट नीचे है।

आपको बता दें कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ सनातन धर्म के लोग ही यहां आते रहे है और इसका वर्णन किया है।मीरा ने, कबीर ने, सूर ने, गुरुनानक देव जी ने, मलिक मोहम्मद जायसी ने, रजियब ने दादो ने भक्ति मार्ग की शाखा के जो कवि रहे हैं उन सभी लोगों ने वर्णन किया है।कबीर तो सनातन धर्मी नहीं थे, लेकिन उन्होंने भी काशी करवत के बारे में वर्णन किया है।भीमेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से व्यक्ति पाप मुक्त होता रहता है।

काशी करवत को लेकर कई तरह की भ्रामक किस्से और कथाएं फैली हैं।लेकिन स्वराज सवेरा ने ये निर्णय किया कि आप सभी लोगों तक हम सच और हकीकत पहुंचाएंगे।इतिहास से बिना छेड़-छाड़ किए हमने आपको उससे रूबरू करवाया और बताया कि आखिर काशी को मोक्ष नगरी क्यों कहा जाता है।