दो शादियां, स‌उदी में नौकरी, भ्रष्टाचार का आरोप, इस्लाम छोड़ हिंदू बने रिजवी की जाने कुंडली
दो शादियां,स‌उदी में नौकरी,भ्रष्टाचार का आरोप, इस्लाम छोड़ हिंदू बने वसीम रिजवी की जानें कुंडली


06 Dec 2021 |  88



धनंजय सिंह स्वराज सवेरा एडिटर इन चीफ यूपी

लखनऊ।उत्तर प्रदेश शिया वक्‍फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी ने सोमवार को इस्लाम धर्म छोड़कर हिंदू धर्म अपना लिया है।वसीम रिजवी अब नये नाम के साथ जितेंद्र नारायण त्यागी हो गये है।

रिज़वी हिंदू धर्म अपनाने के बाद बोले कि जब मुझे इस्लाम से निकाल दिया गया तो फिर मेरी मर्जी है कि मैं कौन सा धर्म स्वीकार करूं।सनातन धर्म दुनिया का सबसे पहला धर्म है, जितनी उसमें अच्छाइयां पाई जाती हैं, और किसी धर्म में नहीं हैं।रिजवी के हिंदू धर्म अपनाने वाले कदम पर कई तरह के रिएक्शन भी आ रहे हैं।

जाने कौन हैं वसीम रिजवी,इस्लाम छोड़ क्यों अपनाया सनातन धर्म

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही वसीम रिजवी लगातार सुर्खियों के केंद्र में बने हुए हैं।रिज़वी ने देश की 9 मस्जिदों को हिंदुओं को सौंपे जाने की बात उठाई थी।कुतुब मीनार परिसर की मस्जिद को हिंदुस्तान की धरती पर कलंक कह डाला था,मदरसों की तलीम को आतंकवाद से जोड़ा दिया था,कुरान की 26 आयतों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी।इसके बाद शिया और सुन्नी समुदाय के उलेमाओं ने फतवा देकर रिज़वी को इस्लाम से खारिज कर दिया।

मुस्लिम समुदाय ही नहीं रिजवी के परिवार के लोग भी इनके खिलाफ हो गए थे।रिजवी की मां और भाई ने भी अपना सारे रिश्ते नाते तोड़ लिये थे।रिजवी को सोमवार को गाजियाबाद के देवी मंदिर में यति नरसिंहानंद सरस्वती ने हिंदू धर्म में शामिल कराया।जितेंद्र नारायण त्यागी बने रिज़वी अपने माथे पर त्रिपुंड लगाए गले में भगवा बाना पहने हुए हाथ जोड़कर भगवान की पूजा करते हुए दिखे।

वसीम से जितेंद्र त्यागी बने

हिंदू धर्म को अपनाने के बाद जितेंद्र नारायण त्यागी (वसीम रिजवी) ने कहा कि मुझे इस्लाम से निकाल दिया गया तो मेरी मर्जी है कि मैं कौन सा धर्म अपनाने। सनातन धर्म दुनिया का पहला धर्म है, जितनी उसमें अच्छाइयां पाई जाती हैं, और किसी धर्म में नहीं है। इस्लाम को हम धर्म ही नहीं समझते।हर जुमे की नमाज के बाद हमारा सिर काटने के लिए फतवे दिए जाते हैं तो ऐसे हालात में हमको कोई मुसलमान कहे, इससे हमको खुद शर्म आती है।

जाने रिजवी का फैमिली बैकग्राउंड

आपको बता दें कि हिंदू धर्म अपनाने वाले वसीम रिजवी का जन्म शिया मुस्लिम परिवार में हुआ था।रिजवी पिता रेलवे के कर्मचारी थे,लेकिन जब रिजवी कक्षा 6 में पढ़ रहे थे तभी पिता का निधन हो गया था। पिता के निधन के बाद रिजवी और उनके भाई-बहनों की जिम्मेदारी उनकी मां पर आ गई।रिजवी अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े थे।रिजवी 12वीं तक पढ़ाई की और बाद में सउदी अरब चलें ग‌ए।रिज़वी ने स‌उदी में एक होटल में नौकरी करनी शुरू की।रिज़वी कुछ दिन बाद जापान और अमेरिका में काम किया।

रिजवी को पारिवार की परिस्थितियों की वजह से लखनऊ लौटना पड़ा। रिजवी ने लखनऊ में अपना खुद का काम शुरू कर दिया।रिजवी के इस दौरान तमाम लोगों के साथ अच्छे संबंध बने तो नगर निगम का चुनाव लड़ने का फैसला किया। रिजवी की यहीं से राजनीतिक करियर की शुरूआत हुई। रिजवी इसके बाद शिया धर्म गुरु मौलाना कल्बे जव्वाद के करीब आए और शिया वक्फ बोर्ड के सदस्य बने।
रिजवी ने दो शादियां कीं और दोनों ही लखनऊ में हुई हैं। रिवजी के पहली पत्नी से तीन बच्चे हैं, जिनमें दो बेटियां और एक बेटा है।तीनों ही बच्चों की शादियां हो चुकी है।

रिजवी का कल्बे जव्वाद से रहा गहरा नाता

2003 में जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने तो वक्फ मंत्री आजम खान की सिफारिश पर सपा नेता मुख्तार अनीस को शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया,लेकिन अनीस के कार्यकाल में लखनऊ के हजरतगंज में एक वक्फ संपत्ति को बेचे जाने का मौलाना कल्बे जव्वाद ने कड़ा विरोध किया था। मौलाना के तल्ख रुख पर मुख्तार अनीस को बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था।इसके बाद मुलायम सिंह यादव से 2004 में मौलाना कल्बे जव्वाद की सिफारिश पर वसीम रिजवी को शिया वक्फ बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया।

2007 में विधानसभा चुनाव के बाद मायावती की सरकार बनने के बाद ही रिजवी ने सपा छोड़कर बसपा में चले गये। 2009 में शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।इसके बाद जब नए शिया बोर्ड का गठन हुआ तो मौलाना कल्बे जव्वाद की सहमति से उनके बहनोई जमालुद्दीन अकबर को अध्यक्ष बनाया गया और इस बोर्ड में रिजवी सदस्य चुने गए।यहीं से रिजवी और मौलाना कल्बे जव्वाद के बीच सियासी वर्चस्व की जंग शुरू हुई।

रिजवी और जव्वाद में वर्चस्व की जंग

2010 में शिया वक्फ बोर्ड पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा तो तत्कालीन अध्यक्ष जमालुद्दीन अकबर ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद रिजवी एक बार फिर शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष पद पर कब्जा किए। 2012 में सत्ता परिवर्तन हुआ और सपा सरकार बनने के दो महीने बाद 28 मई को वक्फ बोर्ड को भंग कर दिया गया।रिजवी के आजम खान से करीबी नाते के कारण 2014 में वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष बने। मौलाना कल्बे जव्वाद ने इसे लेकर सपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

कल्बे जव्वाद अपने समर्थकों के साथ सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया,लेकिन आजम खान की वजह से रिजवी वक्फ बोर्ड अध्यक्ष बने रहे। 2017 में सत्ता परिवर्तन होने के बाद रिजवी ने अपने राजनीतिक तेवर भी पूरी तरह से बदल लिए।रिजवी ने अपना शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष के तौर पर अपना कार्यकाल 18 मई 2020 को पूरा किया,लेकिन दोबारा से वापसी नहीं हो सकी।रिजवी शिया वक्फ बोर्ड के सदस्य अभी भी हैं।

रिजवी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप

वसीम रिजवी पर कई वक्फ संपत्तियों में भ्रष्टाचार करने के भी आरोप लगे और तमाम एफआईआर दर्ज कराई गई।कल्बे जव्वाद के प्रभाव में योगी सरकार ने वक्फ संपत्तियों पर हुए अवैध कब्जे की जांच सीबीसीआईडी के हवाले कर दी।अब यह मामला सीबीसीआईडी के हवाले हैं।सूबे के पांच जिलों में धांधली मामले में रिजवी समेत कुल 11 लोगों पर मुकदमा दर्ज हुए हैं।सीबीसीआईडी ने सूबे के शिया वक्फ संपत्तियों को गैर कानूनी तरीके से बेचने,खरीदने और हस्तांतरित करने के आरोप में ये मामला दर्ज किया हैं।ऐसे वो अब इस्लाम धर्म छोड़कर हिंदू धर्म अपना लिया है और वसीम रिजवी से जितेंद्र नारायण त्यागी बन गए हैं।

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