पश्चिमी यूपी में मुस्लिम-जाट फार्मूले की सफलता को लेकर सपा-रालोद क्यों है आशंकित,आओ जानें
पश्चिमी यूपी में मुस्लिम-जाट फॉर्मूले की सफलता को लेकर सपा-रालोद क्यों हैं आशंकित,आओ जानें


18 Jan 2022 |  319



रिपोर्ट-शुभम कुमार यूपी क्राइम हेड यूपी

लखनऊ।किसान आंदोलन के कारण इस बार चुनाव में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन को पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बहुत उम्मीदें हैं।पिछले तीन चुनावों से इस इलाके में भारतीय जनता पार्टी ने अपना दबदबा बनाए हुए है,लेकिन इस बार सपा और रालोद के नेताओं को लग रहा है कि वो जाट और मुसलमानों को अपने पाले में लाने के राजी कर लेंगे। दोनों ने पहली लिस्ट निकाली तो लगा कि संख्या बल के हिसाब से उन्होंने इसी मिशन के तहत टिकट बांटे हैं,लेकिन अब लग रहा है कि ऐसा नहीं हुआ है। इनके मन में भाजपा के कथित ध्रुवीकरण वाले हथियार का ऐसा डर बैठा हुआ है, जिसके चलते अब मुसलमानों के एक वर्ग में बेचैनी बढ़ने लगी है और बाकी का पोल टिकैत बंधुओं की बेसब्री खोल रहा है।

मुस्लिम से मुजफ्फरनगर में परहेज क्यों

सपा मुखिया अखिलेश यादव और रालोद मुखिया जयंत चौधरी ने पूरा प्रयास किया थी कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में इस तरह से प्रत्याशियों को टिकट दें,जिससे जाटों और मुसलमानों को एकसाथ रखने में कोई दिक्कत न हो। उनकी पहली लिस्ट में इन दोनों को बराबर-बराबर सीटें देने पर लगा था कि पहला बाधा तो ये पार कर चुके हैं, लेकिन अब ऐसा लग नहीं रहा है,खासकर मुजफ्फरनगर में मुसलमानों के बीच टिकट बंटवारे को लेकर बेचैनी के संकेत मिल रहे हैं। इस इलाके में मुसलमानों की आबादी लगभग 38 फीसदी है,लेकिन जिले की 6 में से एक भी सीट पर अभी तक मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं मिला है। पांच प्रत्याशियों के नामों की घोषणा की गई है और सारे के सारे हिंदू हैं।

मुसलमानों में सपा-रालोद के टिकट बंटवारे से बेचैनी

मुजफ्फरनगर में मुसलमानों को टिकट से दूर रखने की अखिलेश और जयंत की रणनीति समुदाय के लोग हजम नहीं कर पा रहे हैं।एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक इलाके के बड़े मुस्लिम नेता कादिर राणा और बाकी चुनाव लड़ने की तैयारी में थे,लेकिन अब वह उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। ऐसे मुस्लिम नेताओं की शिकायत है कि ये तब हो रहा है जब पिछले दो साल से रालोद के नेता भाईचारा कमिटी की बात कर रहे थे और कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में जाट-मुस्लिम एकता की दुहाई दे रहे थे।ऐसी ही स्थिति सहारनपुर में भी देखने को मिल रही है,जहां कांग्रेस छोड़कर आए इमरान मसूद और सहारनपुर देहात के पार्टी के विधायक मसूद अख्तर को भी अभी तक मायूसी ही हाथ लगी है। इनकी मायूसी का फायदा असदुद्दीन ओवैसी और मायावती भी उठा सकते हैं।

मुस्लिम-जाट फॉर्मूले की सफलता पर सपा-रालोद क्यों है आशंकित

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में 2013 हुए सांप्रदायिक दंगों का केंद्र बिंदु मुजफ्फरनगर ही था। उस चुनाव के बाद से भारतीय जनता पार्टी ने इलाके में बाकी दलों के छक्के छुड़ा रखे हैं। शायद समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के नेतृत्व को लगता है कि मुजफ्फरनगर से मुसलमानों को टिकट देना भाजपा के लिए ध्रुवीकरण को बुलावा देना है। दरअसल इलाके में मुस्लिम-जाट एकता को ईवीएम तक बरकरार रख पाना सपा-रालोद के लिए दो धारी तलवार पर चलने जैसा है,फिलहाल इनकी सोच यही है कि मुसलमानों के पास गठबंधन के अलावा कोई विकल्प नहीं हैं।

टिकैत से बैटिंग करवाने की कोशिश भी कर ग‌ई बैकफायर

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों का समर्थन सपा-रालोद गठबंधन को मिले इसके लिए भारतीय किसान यूनियन के चीफ नरेश टिकैत से भी बैटिंग करवाई गई। टिकैत ने संभल में विभिन्न खापों से कहा कि भाई आप लोगन ते परीक्षा की घड़ी है। गठबंधन ते सफल बनाना है।टिकैत ने यहां तक कहा कि गठबंधन की जीत के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं करें,लेकिन जब टिकैत का ये बयान वायरल हुआ तो वो अपनी ही बात से मुकर गए और उनके छोटे भाई राकेश टिकैत ने पहले बात संभालने की कोशिश की और कहा कि हमने किसी को समर्थन नहीं दिया।लोगों को ही समझने में गलती हो गई।बाद में नरेश टिकैत ने यह कहकर अपनी कही हुई बात को संभाला कि उनके पास जो भी आशीर्वाद लेने आएगा उसे आशीर्वाद देंगे। इसी के बाद केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता संजीव बालियान ने भी उनसे मुलाकात की है।

भाजपा को इस फॉर्मूले के नाकाम रहने का है पक्का यकीन

भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में पहले दो चरण के लिए जिन 105 प्रत्याशियों के नामों की घोषणा की है, उनमें से 83 पिछली बार चुनाव जीते थे। इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी शामिल है जो पिछले तीन चुनावों 2014, 2017 और 2019 से भाजपा का मजबूत किला बन चुका है। भाजपा नेताओं को यकीन है कि 2022 के चुनाव में भी वह ये सभी 83 सीटें जीत लेंगे। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को पक्का यकीन है कि पिछले तीनों चुनावों की तरह ही इस बार जो सपा और रालोद की ओर से मुस्लिम-जाट समीकरण की बात की जा रही है, वह धरातल पर सफल नहीं होने वाली है।

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