मायावती और ओवैसी की वजह से दिलचस्प होगी पश्चिमी यूपी की सियासी लड़ाई
मायावती और ओवैसी की वजह से दिलचस्प होगी पश्चिमी यूपी की सियासी लड़ाई


18 Jan 2022 |  86



रिपोर्ट-शुभम कुमार यूपी क्राइम हेड

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की रणभेरी का बिगुल बज चुका है।सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी अपनी चुनावी गोटियां सेट करने में जुटी हुई हैं।इस बार चुनाव का पहला चरण 10 फरवरी को होगा जिसमे पश्चिमी उत्तर के 11 जिले शामिल हैं।एक तरफ जहां समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल का गठबंधन अपना पूरा जोर लगा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है।इन सबके बीच बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री ने विधानसभा चुनाव को बेहद दिलचस्प बना दिया है।कई सीटों पर ऐसे हालात बन रहे हैं जिससे भारतीय जनता पार्टी के रास्ते असान हो रहे है।राजनीतिक पंडितों की मानी जाए तो एक एक सीट पर तीन-तीन मुस्लिम प्रत्याशियों के कारण वोटों का विभाजन होना तय है और इसका सीधा फायदा सत्ताधारी पार्टी को मिल सकता है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी सीटों पर इस कदर मुस्लिम समीकरण हावी है कि बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने जमकर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं।कई सीटें ऐसी हैं जहां सपा और बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतार दिए हैं,जबकि बची खुची कसर ओवैसी ने पूरी कर दी है।ओवैसी ने 9 सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतार दिया है।


आपको बताते चलें कि बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने भी 53 सीटों पर प्रत्याशियों का एलान किया है।इसमें 14 सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया है। बसपा ने बुढ़ाना, चरथावल, खतौली, सिवालखास, मेरठ साउथ, छपरौली, लोनी,। मुरादनगर, धौलाना, हापुड़, गढ़मुक्तेश्वर, शिकारपुर और अलीगढ़ में मुस्लिम प्रत्याशियों को उतारा हैं।बसपा दलित मुस्लिम समीकरण बनाकर अपनी रहें आसान करने की रणनीति पर काम कर रही है। इन सभी सीटों पर सपा और आरएलडी का गठबंधन भी पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ रहा है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गठबंधन की उम्मीद भी मुसलमानों पर ही जाकर टिकी है।सपा और रालोद का गठबंधन भी मुस्लिम जाट समीकरण के सहारे खुद को मजबूत करने की तैयारी में जुटा हुआ है।मायावती हो चाहे अखिलेश हो या जयंत हों सबकी निगाहें मुसलमानों पर ही टिकी हैं।ओवैसी की एंट्री ने इनकी मुसीबत को बढ़ाने काम किया है,बैरहाल गठबंधन के लिए बात ये है कि इन सीटों पर यादव समुदाय की संख्या काफी कम ही है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर त्रिकोणीय चुनावी लड़ाई के हालात बन रहे है। मेरठ दक्षिणी सीट पर बसपा ने कुंवर दिलशाद को मैदान में उतारा है तो आम आदमी पार्टी ने भी अपने पुराने प्रत्याशी को हरी झंडी दी है।ऐसे में मुस्लिम प्रत्याशी आमने सामने आ सकते हैं।अलीगढ़ से सपा और बसपा दोनों ने ही मुस्लिम प्रत्याशी पर दांव लगाया है तो वहीं भाजपा ने अभी तक अलीगढ़ सीट पर अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है।

ओवैसी ने उलझाई सबकी गणित

ओवैसी बिहार की तरह ही यूपी विधानसभा चुनाव में पूरा जोर लगा रहे हैं।ओवैसी को चुनाव में कितनी सफलता मिलेगी ये तो आने वाला समय ही बताएगा।ओवैसी ने प्रत्याशियों की घोषणा कर विरोधियों की आंखों की नीद तो उड़ा ही दी है।बसपा ने लोनी से हाजी अकील चौधरी को मैदान में उतारा है,जबकि ओवैसी ने यहां डॉक्टर महताब को टिकट दिया है,रालोद ने गुर्जर प्रत्याशी मदन भैया को मैदान उतारा हैं।यही हाल धौलाना सीट का है।इस बार सपा से असलम चौधरी मैदान में हैं, जो पिछली बार बासपा के टिकट पर 3 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे।बसपा ने इस बार यहां से वासिद प्रधान को टिकट दिया है,तो वहीं ओवैसी ने भी इस सीट पर हाजी आरिफ पर दांव लगा दिया है।बाकी कई सीटों पर कुछ इसी तरह की तस्वीर सामने आ रही है।

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