पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह व पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच वर्चस्व की लड़ाई
धनंजय सिंह

राष्ट्रीय राजनीति में मध्य प्रदेश में उठापटक का खेल चल रहा है l मध्य प्रदेश में मचे राजनीतिक तूफान को समझना है तो राजनीतिक घटना याद करनी होगी l एक घटना 27 साल पुरानी है तो दूसरी 200 साल से ज्यादा पुरानी है l कहा भी जाता है कि इतिहास खुद को दोहराता है, दिसंबर 2012 में 1993 का इतिहास दोहराया गया था l मध्य प्रदेश में वर्ष 1993 में मुख्यमंत्री पद के लिए माधवराव सिंधिया और दिग्विजय सिंह का नाम शीर्ष पर था l लेकिन बाजी मारी दिग्विजय सिंह ने l इससे पहले भी वर्ष 1985 - 90 में राजी

12 Mar 2020 |  303



धनंजय सिंह

राष्ट्रीय राजनीति में मध्य प्रदेश में उठापटक का खेल चल रहा है l मध्य प्रदेश में मचे राजनीतिक तूफान को समझना है तो राजनीतिक घटना याद करनी होगी l एक घटना 27 साल पुरानी है तो दूसरी 200 साल से ज्यादा पुरानी है l कहा भी जाता है कि इतिहास खुद को दोहराता है, दिसंबर 2012 में 1993 का इतिहास दोहराया गया था l मध्य प्रदेश में वर्ष 1993 में मुख्यमंत्री पद के लिए माधवराव सिंधिया और दिग्विजय सिंह का नाम शीर्ष पर था l लेकिन बाजी मारी दिग्विजय सिंह ने l इससे पहले भी वर्ष 1985 - 90 में राजीव गांधी भी अपने दोस्त माधवराव सिंधिया को मुख्यमंत्री के लिए अर्जुन सिंह और मोतीलाल बोरा पर परहेज नहीं दे पाए थे l वैसे मध्य प्रदेश की राजनीति में राधौगढ़ और सिंधिया घराने आने के बीच आपसी होड़ की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है l इस होड़ की कहानी 200 वर्षों से ज्यादा पुरानी है l जब 1816 में सिंधिया घराने के दौलतराव सिंधिया ने राधौगढ़ के राजा जय सिंह को युद्ध में हरा दिया था l राधौगढ़ को तब ग्वालियर के अधीन होना पड़ा था l इसका हिसाब दिग्विजय सिंह ने माधवराव सिंधिया को वर्ष 1993 में मुख्यमंत्री की दौड़ में परास्त कर बराबर कर दिया था l वर्ष 2018 में ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री की दौड़ में कमलनाथ से पिछड़ गए थे और इसके बाद अपने लोकसभा क्षेत्र के सांसद प्रतिनिधि केपी यादव से 2019 में अपनी परंपरागत सीट शिवपुरी गुना में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था l इसी दौरान उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ज़िम्मेदारी मिली वहां भी पार्टी अपना खाता नहीं खोल पाई थी l वर्चस्व की जंग में राजनीतिक पारी की शुरुआत करनी पड़ी l

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