इन राशि वालों के लिए बहुत शुभ हैं नवरात्रि: अतुल शास्त्री
इन राशि वालों के लिए बहुत शुभ हैं नवरात्रि:अतुल शास्त्री


01 Apr 2022 |  185



रिपोर्ट-शिव शंकर त्रिपाठी


प्रतापगढ़।नवरात्रि के साथ हिन्दू नववर्ष का पर्व आ चुका हैं।प्रकृति अपने सम्पूर्ण सौंदर्य के साथ महकने के लिए तैयार है,हो भी क्यों ना भारतीय नववर्ष का स्वागत प्रकृति और लोग दोनों ही आतुरता से करते हैं।इस साल 2 अप्रैल शनिवार से चैत्र नवरात्रि शुरू हो रही हैं और 11 अप्रैल को खत्म होगी।मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आ रही हैं और भैंसे पर प्रस्‍थान करेंगी।माता की इस सवारी को शुभ नहीं माना जाता है,लेकिन इस बार ग्रहों के उलटफेर ने कुछ राशि वालों के लिए इस नवरात्रि को बेहद खास बना दिया है।

इन राशि वालों के लिए बेहद शुभ हैं नवरात्रि

ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री के अनुसार चैत्र नवरात्रि के दौरान 2 बेहद अहम ग्रह राशि बदलने जा रहे हैं।इन 9 दिनों में शनि और मंगल का मकर राशि में गोचर हो रहा है। यह दोनों ग्रह एक-दूसरे के शत्रु हैं और एक ही राशि में इनका मिलना कई मुश्किलें पैदा करेगा। यह परिवर्तन कर्क, कन्या और धनु राशि वालों के लिए शुभ नहीं रहेगा और उन्‍हें इस दौरान सतर्क रहना चाहिए। मेष, मकर और कुंभ राशि वालों के लिए यह बहुत शुभ रहेगा और समय जमकर लाभ कराएगा,अच्‍छी खबरें सुनने को मिलेंगी,करियर-कारोबार में तरक्‍की मिल सकती है।

अतुल शास्त्री ने बताया कि कलश स्थापना मुहूर्त, 1 अप्रैल दिन गुरुवार सुबह 11:53, और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ 2 अप्रैल दिन शुक्रवार 11:58पर। सुबह चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि का समापन घटस्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 10 मिनट से 8 बजकर 31 मिनट तक।कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त दोपहर 12:00 बजे से 12 बजकर 50 मिनट तक। ज्योतिषीय दृष्टि से विशेष महत्व रखने वाले चैत्र नवरात्र में सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य इस दौरान मेष में प्रवेश करता है। चैत्र नवरात्र से नववर्ष के पंचांग की गणना शुरू होती है। सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने का असर सभी राशियों पर पड़ता है।

अतुल शास्त्री कहते है कि नवरात्र के नौ दिन काफी शुभ होते हैं।इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य बिना सोच-विचार किए लेना चाहिए।इसका कारण यह है कि पूरी सृष्टि को अपनी माया से ढ़कने वाली आदिशक्ति मां इस समय पृथ्वी पर होती है।चैत्र नवरात्र को भगवान विष्णु मत्स्य रूप में पहला अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी। इसके बाद भगवान विष्णु का भगवान राम के रूप में अवतार भी चैत्र नवरात्र में ही हुआ था। इसलिए इनका बहुत अधिक महत्व है। चैत्र नवरात्र हवन पूजन और स्वास्थ्य के बहुत फायदेमंद होते हैं। इस समय चारों नवरात्र ऋतुओं के संधिकाल में होते हैं यानी इस समय मौसम में परिवर्तन होता है। इस कारण व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोरी महसूस करता है। मन को पहले की तरह दुरुस्त करने के लिए व्रत किए जाते हैं। वैदिक धर्म शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के दौरान दुर्गासप्तशती का पाठ करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और समस्त पापों का नाश होता है। सामान्य रूप से दुर्गासप्तशती के सम्पूर्ण पाठ को करने का ही विधान है और समयाभाव अथवा किन्हीं विशेष परिस्थितियों में सप्तश्लोकी का, लेकिन वर्तमान समय में संपूर्ण दुर्गासप्तशती पढ़ने का समय निकालना सभी के लिए संभव नहीं है।

अतुल शास्त्री ने कहा कि इस अवस्था में आप निम्नलिखित मंत्र का पूर्ण विधि-विधान से जप कर संपूर्ण दुर्गासप्तशती पढ़नेका फल प्राप्त कर सकते हैं। इस मंत्र को एक श्लोकी दुर्गासप्तशती भी कहते हैं।यह मंत्र इस प्रकार है

या अंबा मधुकैटभ प्रमथिनी,या माहिषोन्मूलिनी,या धूम्रेक्षण चन्ड मुंड मथिनी,या रक्तबीजाशिनी, शक्तिः शुंभ निशुंभ दैत्य दलिनी,या सिद्धलक्ष्मी: परा, सादुर्गा नवकोटि विश्व सहिता,माम्पातु विश्वेश्वरी।

अतुल शास्त्री ने कहा कि इस मंत्र के जाप को निम्नलिखित विधि के अनुसार करें।प्रातःकाल सूर्योदय के समय नहाकर, स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पश्चात भगवती दुर्गा के चित्र का विधिवत पूजन करें। माँ दुर्गा के चित्र के समक्ष आसन लगाकर रुद्राक्ष की माला लेकर इस मंत्र का जाप करें।शीघ्र एवं उत्तम फल प्राप्त करने के लिए कम से कम पांच बार माला से जाप करें और समयाभाव की स्थिति में एक माला करें,लेकिन यह ध्यान रखें कि आप एक दिन अधिक और दूसरे दिन कम मंत्रों का जाप नहीं कर सकते इसलिए नियत समय पर बंधी हुई संख्या में मंत्र का जाप करना ही उचित रहेगा। साथ ही इस जाप के लिए सर्वश्रेष्ठ आसन कुश का है।

अतुल शास्त्री ने कहा कि नवरात्रि विधान में मंत्रोपचार सर्वोपरि है इससे ऊपर कोई भी उपचार नहीं माना जाता है।कोई भी टोना टोटका, दान या विधान उतना प्रभावशाली नहीं है जितना मंत्रोपचार है।हमारे सनातन शास्त्रो में जीवन की समस्यायों को नियंत्रित करने के लिए योगों को विशेष महत्व दिया गया है।तिथि करण पर आधारित पंचांग इत्यादि।किसी विशेष योग, मुहूर्त, नक्षत्र के समय किए गए अनुष्ठान विशेष लाभ देने वाले और प्रभाव को कई गुना बढाने वाले होते है। विशेष रूप से तीर्थ स्थलों में अनुष्ठान, ग्रहण, पूर्णिमा या अमावस्या पर किए जानेवाले अनुष्ठानों का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।

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