यूपी विधान परिषद 86 साल बाद हो जाएगी कांग्रेस मुक्त, जानें इसके पीछे की कहानी
यूपी विधान परिषद 86 साल बाद हो जाएगी कांग्रेस मुक्त,जानें इसके पीछे की कहानी


18 May 2022 |  238



धनंजय सिंह स्वराज सवेरा एडिटर इन चीफ यूपी

लखनऊ।उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से पराजय का सामना करने वाली कांग्रेस के लिए कहीं से भी अच्छी खबर नहीं आ रही है।विधानसभा चुनाव में सिर्फ दो सीटों पर सिमटने वाली कांग्रेस अब विधान परिषद में जीरो बनकर रह जाएगी। 86 सालों बाद ऐसी हालत आएगी जब विधान परिषद कांग्रेस मुक्त दिखेगी। कांग्रेस 1935 में परिषद के गठन के बाद पहली बार उत्तर प्रदेश की विधान परिषद में अपना प्रतिनिधित्व खोने जा रही है।देश की सबसे पुरानी पार्टी के अकेले विधान परिषद सदस्य दीपक सिंह 6 जुलाई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।जिसके बाद अब विधान परिषद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व समाप्त हो जाएगा।

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति में एक लोकप्रिय चेहरा दीपक सिंह 1990 के दशक की शुरुआत में अपने कॉलेज के दिनों से ही पार्टी के एक प्रतिबद्ध कार्यकर्ता रहे हैं। जून 2016 में यूपी विधान परिषद के लिए चुने गए दीपक सिंह के कार्यकाल की समाप्ति के साथ कांग्रेस का यूपी के ऊपरी सदन में अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। इस हालत ने निश्चित तौर से उन कांग्रेसियों के मनोबल को प्रभावित किया है जो 2022 के विधानसभा चुनाव परिणामों से अभी तक उबर नहीं पाए हैं।जिसमें पार्टी सिर्फ दो विधायकों के लिए थी। तब से पार्टी ने नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति तक नहीं की है।

यूपी की विधान परिषद में 100 सीटें हैं, जिनमें से 38 को यूपी विधान सभा सदस्यों द्वारा नामित किया जाना है, जबकि 36 सदस्यों का चयन स्थानीय निकायों के माध्यम से किया जाना है। आठ सदस्यों का चयन स्नातक और शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के चुनावों के माध्यम से किया जाता है जबकि शेष 10 सदस्यों को राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राज्यपाल द्वारा नामित किया जाता है।


राज्य के उच्च सदन में भारतीय जनता पार्टी के 66 सदस्य हैं। विधान परिषद के रिकॉर्ड के अनुसार अगले कुछ महीनों में 15 सदस्य सेवानिवृत्त होने वाले हैं। इनमें नौ समाजवादी पार्टी के, दो भारतीय जनता पार्टी के और तीन बहुजन समाज पार्टी के और एक कांग्रेस के है। बहुजन समाज पार्टी के तीन एमएलसी अतहर सिंह, सुरेश कुमार और दिनेश चंद्रा के जुलाई में सेवानिवृत्त होने के बाद पार्टी के पास सिर्फ एक सदस्य का ही प्रतिनिधित्व रह जाएगा।

विशेष रूप से 1935 के भारत सरकार अधिनियम द्वारा संयुक्त प्रांत ब्रिटिश भारत की परिषद 60 सदस्यों के साथ अस्तित्व में आई। बाद में इसे 1950 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद में बदल दिया गया। कांग्रेस 1935 से राज्य के उच्च सदन का हिस्सा रही है।

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