मुंह के बल भतीजा:कृष्णेन्द्र राय
आखिरकार चाचा ने।
कर ही दिया खेल।।
मोह-माया त्याग कर।
दिया जो ढ़केल।।
मुंह के बल भतीजा।
रचा चक्रव्यूह।।
चाचा को समर्थन।
देता बड़ा समूह।।
साम-दाम-दंड-भेद।
यही राजनीति।।
सत्ता होती प्यारी।
रिश्तों से ना प्रीति।।
अपनों से मतभेद।
लिया रुप विद्रोह।।
अनगिनत है चाल।
ले सकते हैं टोह।।
|