लखनऊ।उत्तर प्रदेश में गठबंधन धर्म की परीक्षा की घड़ी आ चुकी है।चुनावी रथ जैसे -जैसे पूरब की ओर बढ़ेगा गठबंधन धर्म की परीक्षा कड़ी होगी।गठबंधन चाहे एनडीए का हो या इंडी का रिश्तों में ईमानदारी की कसौटी पर दोनों ही कसे जाएंगे।भारतीय जनता पार्टी के सहयोगियों के लिए परीक्षा अधिक कड़ी है। इंडी के लिए भी कुछ कम नहीं है।इसका एक बड़ा कारण गठबंधन में शामिल सहयोगियों की पृष्ठभूमि है।
यूपी में भाजपा का सुभासपा,निषाद पार्टी और अपना दल (एस) से गठबंधन है।सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश राजभर पूर्वांचल में बहराइच से लेकर बलिया तक और गोंडा से लेकर गाजीपुर तक फैली राजभर बिरादरी के प्रतिनिधित्व का दावा करते हैं।इसी तरह निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद कानपुर,कन्नौज से लेकर गोरखपुर और गाजीपुर तक निषाद बिरादरी और अनुप्रिया पटेल बरेली और बुंदेलखंड से लेकर मिर्जापुर तक फैली यूपी की लगभग 54 प्रतिशत पिछड़ी आबादी के प्रतिनिधित्व का दावा करती हैं। इनमें सचान, वर्मा, कटियार और कुर्मी नामों से चर्चित 9 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाली बिरादरी हैं।
भाजपा ने गठबंधन धर्म का निर्वाह करते हुए ओमप्रकाश राजभर को हाल में ही विधान परिषद की एक सीट देने के साथ ही घोसी लोकसभा सीट भी दी है।घोसी से ओपी राजभर ने अपने बेटे अरविंद राजभर को चुनाव लड़ा रहे हैं।वही संजय निषाद को न केवल कैबिनेट मंत्री बनाया, बल्कि उनके एक बेटे को 2019 में सांसद बनाया और इस चुनाव में भी संतकबीरनगर सीट से टिकट दिया है। जबकि दूसरे बेटे को विधायक बना रखा है। इसी तरह अपना दल (एस) की नेता अनुप्रिया को केंद्र में, तो उनके पति आशीष सिंह पटेल को प्रदेश में कैबिनेट मंत्री बनाया है।
भाजपा ने अन्य सहयोगियों की तुलना में अपना दल (एस) को अधिक सीटों की हिस्सेदारी भी दी है। इनमें मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज शामिल हैं।फ्लैशबैक में जाएं तो अनुप्रिया अपनी दोनों सीटें जीतने के साथ ही पूर्वांचल, बुंदेलखंड और रुहेलखंड की कई सीटों पर भाजपा को फायदा पहुंचाती रही हैं।ऐसे में जाहिर है कि इंडी गठबंधन और सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक ) को देखते हुए इस बार भाजपा भी इसी कोशिश में है कि अगले चरणों में राजभर, कुर्मी और निषादों के साथ ही उनकी उप जातियों का वोट 2019 के मुकाबले ज्यादा मिले।
इंडी गठबंधन की बात करें तो उनके लिए भी ऐसी ही परीक्षा है। भले ही इस गठबंधन में सपा और कांग्रेस दो ही दल हों। पृष्ठभूमि के लिहाज से इंडी गठबंधन और एनडीए के सियासी गणित में बड़ा अंतर है, लेकिन इन सबके बावजूद एक-दूसरे को पूरी ईमानदारी से मत स्थानांतरित कराने की परीक्षा है।
जाहिर है कि सपा को जहां रायबरेली और अमेठी पर विशेष ध्यान देते हुए कांग्रेस के उम्मीदवार वाली सीटों पर पिछड़े और मुस्लिम वोट ट्रांसफर कराने होंगे। वहीं कांग्रेस को अपने साथ बचे-खुचे सामान्य वर्ग के मतदाताओं के साथ दलित और मुस्लिम वोटों का सपा के पक्ष में स्थानांतरण कराना चुनौती है।
|