*गांधी परिवार की अहम सीट अमेठी,पति-पत्नी को मिली पहली हार,बाप-बेटे की जोड़ी ने किया था कमाल
*गांधी परिवार की अहम सीट अमेठी,पति-पत्नी को मिली पहली हार,बाप-बेटे की जोड़ी ने किया था कमाल

25 Apr 2024 |  36




अमेठी। देश के सियासी इतिहास में सबसे मजबूत और ताकतवर गांधी परिवार को माना जाता है।गांधी परिवार का गढ़ उत्तर प्रदेश रहा है,जिसमें अमेठी लोकसभा बहुत अहम है।इसी सीट से गांधी परिवार से जुड़े 5 लोगों ने अपने सियासी पारी की शुरुआत की है।दो पराजित हुए और तीन जीत के साथ आगे बढ़ने में कामयाबी पाई।

अमेठी देश की महत्वपूर्ण लोकसभा में से एक है।अमेठी के चुनावी नतीजे पर सभी निगाहें जमी रहती है।उत्तर प्रदेश का अमेठी एक महत्वपूर्ण जिला है। 2019 के लोकसभा चुनाव के चुनावी नतीजे को लेकर ये लोकसभा सीट विश्व में चर्चा में रही थी।तब भारतीय जनता पार्टी से प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने अमेठी से सांसद राहुल गांधी को पराजित कर दिया था। कांग्रेस ने अभी तक यहां से प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। माना जा रहा है कि राहुल गांधी इस बार अमेठी से चुनावी ताल नहीं ठोंकना चाह रहे हैं।कौन चुनावी ताल ठोंकेगा अभी साफ नहीं हो सका है।

गांधी परिवार से एक या दो नहीं बल्कि पांच लोगों ने अमेठी लोकसभा सीट से अपने सियासी पारी की शुरुआत की। इनमें से पति-पत्नी की एक जोड़ी को पहले ही मुकाबले में पराजय का सामना करना पड़ा तो एक जोड़ी ने जीत का परचम लहराया।बाप-बेटे की जोड़ी ने भी कमाल किया।राहुल गांधी ने भी अपने सियासी पारी की शुरुआत अमेठी लोकसभा सीट पर जीत का परचम लहराया कर की थी।

1977 में गांधी परिवार का अमेठी से नाता पहली बार जुड़ा। तब इमरजेंसी खत्म होने के बाद देश में लोकसभा चुनाव कराया गया।इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने चुनावी मैदान में ताल ठोंकने का फैसला लिया।संजय गांधी ने संसद पहुंचने के लिए अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा,लेकिन लोगों में इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी को लेकर इस कदर नाराजगी थी कि बुरी तरह से पराजित हुए।

संजय गांधी को चुनाव में 100,566 वोट मिले और भारतीय लोकदल के रविंद्र प्रताप सिंह को 176,410 वोट मिले।रविंद्र ने 75,844 वोटों के अंतर से जीत का परचम लहराया,लेकिन अमेठी के लोगों में यह बेरुखी अधिक समय नहीं रही।लगभग ढाई साल बाद 1980 में जब देश में लोकसभा का चुनाव हुआ तो बदली हुई स्थिति के बीच संजय गांधी ने फिर अमेठी से चुनावी ताल ठोंकने का फैसला किया और इस बार उन्होंने जीत का परचम लहराया।

यह चुनाव न सिर्फ संजय गांधी बल्कि कांग्रेस के लिए भी शानदार नतीजे वाला रहा।संजय गांधी ने लगातार दूसरी बार अमेठी से अपनी दावेदारी पेश की।इस बार संजय गांधी ने पिछली बार मिली पराजय का बदला लेते हुए रविंद्र प्रताप सिंह को 1,28,545 वोटों के अंतर से पराजित किया। कांग्रेस लगभग ढाई साल के इंतजार के बाद फिर से सत्ता में वापसी करने में सफल रही।इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बनीं,लेकिन 1981 में संजय गांधी की एक प्लेन हादसे मौत हो गई।

संजय गांधी की मौत के बाद खाली हुई अमेठी लोकसभा सीट पर उपचुनाव कराया गया।उपचुनाव के जरिए संजय गांधी के बड़े भाई राजीव गांधी भी सियासत में आ गए।भाई की मौत के बाद राजीव गांधी भी चुनावी मैदान में आए और अमेठी से ही अपने सियासी पारी की शुरुआत की।राजीव गांधी ने शरद पवार को पराजित किया था।राजीव गांधी को 258,884 वोट मिले तो शरद पवार को 21,188 वोट मिले सके। इस तरह से 77 फीसदी वोटों के अंतर से यानी 237,696 वोटों से राजीव गांधी जीत का परचम लहराया।

इंदिरा गांधी की नृंशस हत्या के बाद देश में अगला लोकसभा चुनाव 1984 में हुआ।कांग्रेस नए नेतृत्व के साथ चुनावी मैदान में उतरी। राजीव गांधी के हाथों में कमान थी।खुद राजीव गांधी ने एक बार फिर अमेठी से चुनावी ताल ठोंकने का फैसला लिया, लेकिन इस बार राजीव गांधी के लिए यह चुनाव थोड़ा असहज करने वाला रहा था,क्योंकि राजीव गांधी के सामने उनके छोटे भाई संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी निर्दलीय चुनाव लड़ रहीं थीं।मेनका गांधी का यह पहला चुनाव था।मेनका गांधी ने भी अपने सियासी पारी की शुरुआत अमेठी लोकसभा सीट से की, लेकिन पति संजय गांधी की तरह उन्हें भी अपने पहले चुनाव में पराजय मिली।

यह चुनाव सहानुभूति लहर में लड़ा गया और कांग्रेस को इसका फायदा भी खूब हुआ।कांग्रेस पहली बार 400 के आंकड़े को पार करने में सफल रही।राजीव गांधी ने 365,041 मेनका गांधी को 314,878 वोटों से पराजित किया था। इस बार राजीव गांधी की जीत का आंकड़ा 70 फीसदी से ज्यादा था।अमेठी से चुनाव जीतने वाले राजीव गांधी देश के छठवें प्रधानमंत्री बने।

राजीव गांधी ने 1989 और 1991 में भी अमेठी लोकसभा सीट से लड़ा। 1989 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी ने महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम को पराजित किया था।कांशीराम तीसरे नंबर पर रहे थे। कांशीराम को 25 हजार से थोड़ा अधिक वोट मिला था। बरहाल 1991 के चुनाव नतीजे को राजीव गांधी नहीं देख सके क्योंकि मतगणना से पहले तमिलनाडु में एक चुनाव प्रचार के दौरान आत्मघाती हमले में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई।

राजीव गांधी की हत्या के बाद इस लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ।इस उपचुनाव में कांग्रेस से कैप्टन सतीश शर्मा ने जीत का परचम लहराया। 1996 में भी सतीश शर्मा ने फिर जीत का परचम लहराया,लेकिन 1998 में भारतीय जनता पार्टी यहां सेंध लगाते हुए में जीत का परचम लहराया।अमेठी में कांग्रेस की यह महज दूसरी हार थी।पति राजीव गांधी की हत्या के लगभग 8 साल बाद सोनिया गांधी ने सियासत में एंट्री की।कांग्रेस ज्वाइन करने के कुछ समय बाद ही सोनिया गांधी कांग्रेस प्रमुख बन गईं। फिर 1999 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी चुनावी मैदान में उतरने का फैसला करती हैं।

सोनिया गांधी ने पति राजीव गांधी की तरह अमेठी लोकसभा सीट चुनी।भाजपा ने सोनिया गांधी के सामने अपने सांसद संजय सिंह को फिर से चुनावी मैदान में उतारा,लेकिन अमेठी के लोगों में गांधी परिवार के प्रति जो अपना समर्थन था वो इस चुनाव में फिर से दिखा।सोनिया गांधी तीन लाख से अधिक यानी 300,012 वोटों के अंतर से जीत का परचम लहराया।राजीव गांधी की तरह सोनिया गांधी भी अपनी पहली सियासी जंग में जीत का परचम लहरा कर कामयाब हुई थीं। बरहाल सोनिया गांधी के देवर और देवरानी संजय गांधी और मेनका गांधी के लिए शुरुआत अच्छी नहीं रही थी। उन्हें यहीं से अपने पहले चुनाव में पराजय मिली थी। बरहाल सोनिया गांधी ने अमेठी को जल्द ही छोड़ दिया और रायबरेली चली गईं।

2004 में जब लोकसभा चुनाव हुआ तो गांधी परिवार के एक और वारिस ने अमेठी लोकसभा सीट से सियासी पारी की शुरुआत की।सोनिया गांधी रायबरेली चली गईं तो उनके बेटे राहुल गांधी ने अमेठी से चुनावी ताल ठोंकने का फैसला लिया। एक बार फिर अमेठी के लोगों ने गांधी परिवार को यहां से जीत दिलाई।राहुल गांधी भी अपने माता-पिता की तरह जीत का परचम लहराया। बरहाल राहुल गांधी अपने माता-पिता की तरह कोई रिकॉर्ड नहीं बना सके।पिता ने अपनी पहली जीत 70 फीसदी से अधिक वोटों के अंतर से हासिल की थी तो मां ने 3 लाख से अधिक वोटों के साथ जीत अपने नाम किया था। राहुल गांधी ने चुनाव में 290,853 के अंतर से जीत का परचम लहराया था।

राहुल गांधी अमेठी से शुरू से चुनाव लड़ते रहे हैं। राहुल गांधी 2004 से लेकर 2019 तक हुए सभी चारों चुनाव में मैदान में उतरे। 2009 और 2014 के चुनाव में भी राहुल गांधी ने जीत का परचम लहराया,लेकिन 2019 के चुनाव में राहुल गांधी को कड़े संघर्ष के बाद पराजित होना पड़ा। भाजपा से प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी अमेठी के लोगों का दिल जीतने में कामयाब रहीं।इसका नतीजा यह हुआ कि राहुल गांधी को पराजय का सामना करना पड़ा।पिता की तरह राहुल गांधी अमेठी से 4 बार चुनावी मैदान में उतर चुके हैं। बरहाल अब 2024 में फिर लोकसभा चुनाव जोरों पर है।

अमेठी लोकसभा सीट से कांग्रेस ने अब तक अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा अभी तक नहीं की है।राहुल गांधी के बारे में कहा जा रहा है कि वो यहां से चुनाव नहीं लड़ना चाह रहे हैं। बरहाल राहुल गांधी को अमेठी से फिर से चुनाव लड़ने के लिए मनाया जा रहा है।अमेठी में पांचवें चरण 20 मई को मतदान होगा। भाजपा ने स्मृति ईरानी को फिर चुनावी मैदान में उतारा है तो कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की ओर से स्मृति ईरानी की चुनौती का कौन सामना करेगा इसका इंतजार है।

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