दिल्ली-एनसीआर का निगम बोध घाट सबसे बड़ा घाट है।निगम बोध घाट का संचालन बड़ी पंचायत वैश्य बीसे अग्रवाल सभा करती है।कहा जाता है कि निगम बोध घाट की स्थापना महाभारत काल में युधिष्ठिर ने की थी और यहीं पर ब्रह्मा जी को अपनी खोई हुई स्मृति भी प्राप्त हुई थी।दिल्ली का लगभग हर बाशिंदा अपने परिजन के अंतिम-संस्कार के लिए निगम बोध घाट को ही चुनता है,भले ही उसके अपने क्षेत्र में भी घाट क्यों न हो,लेकिन इन दिनों ये घाट दमघोंटू होता जा रहा है।
हम आपको बता दें कि यहां अंतिम-संस्कार के लिए घाटों का नवीनीकरण करवाया ही गया है।इसके साथ ही दाह-संस्कार के लिए ट्रॉलीनुमा ढांचे भी बनवाए गए हैं,जिसके ऐन ऊपर एग्ज़ॉस्ट पंखे लगाए गए हैं ताकि दाह-संस्कार से उत्पन्न धुंआ ऊपर ही ऊपर निकल सके और वातावरण प्रदूषण-रहित रह सके,लेकिन इन दिनों ये घाट दमघोंटू होता जा रहा है। यहां दाह संस्कार तो हमेशा की तरह हो रहे हैं पर एग्ज़ॉस्ट पंखे नहीं चलाए जाते।चारों ओर केवल धुंआ ही धुंआ होता है।अब अग़र हवा तेज़ चल रही हो तो घाट का धुंआ तितर-बितर हो जाता है,लेकिन जब हवा का दबाव कम होता है तो यहां सांस लेना भी दूभर हो जाता है।श्मशान घाट के इस धुंए को अपनी सांसों में भरना यहां आने वाले हर आदमी की मजबूरी बन जाती है।
फोटो में आप देख सकते हैं घाट के अंदर की स्थिति जहां चारों ओर दमघोंटू धुंआ पसरा पड़ा है।ये फोटो 26 जून की है।हमने वहां कार्यालय में मौजूद एक कर्मचारी का ध्यान जब इस ओर दिलाया तो पहले तो उन्होंने ये मानने से ही इनकार कर दिया कि एग्ज़ॉस्ट पंखे नहीं चल रहे। जब उन्हें बताया गया कि पूरे परिसर में धुंआ भरा हुआ है,तो कहने लगे पंखों की रिपेयरिंग चल रही होगी।अंतिम संस्कार में शामिल लोग वैसे भी ग़मज़दा होते हैं ऐसे में अग़र वातावरण भी प्रदूषित मिले,तो कोई क्या करेगा।
वैसे संस्था कई अच्छे काम भी कर रही है।घाट में उचित मूल्य पर दाह संस्कार की किट भी उपलब्ध करवाई जाती है,किंतु राष्ट्रीय राजधानी के इस क्षेत्र को प्रदूषण मुक्त बनाए रखने की ज़िम्मेदारी भी तो संस्था की ही है।