बलिया।उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले में लगभग 27 साल पहले 1998 में घाघरा (सरयू) में आई बाढ़ से कटान से रेवती ब्लाक का रामपुर मशरीक गांव पूरी तरह नदी में विलीन हो गया।इस पंचायत का अब पता नही है।यहां के लोग टीएस बंधे के दक्षिण छपरा सारीव और आसपास के कुछ अन्य गांवों में बस गए।धरातल पर अपना अस्तित्व खो चुका रामपुर मशरीक गांव सरकारी रिकॉर्ड में आज भी जिंदा है।बकायदा इसी पंचायत के नाम पर ग्राम प्रधान चुने जा रहे हैं और सरकारी धन का आवंटन तथा खर्च भी हो रहा है।
1998 में जब रामपुर मशरीक गांव नदी में विलीन हो गया तो लगभग एक हजार से अधिक मतदाता और तीन हजार के आसपास की आबादी वाले इस गांव के लोग छपरा सारीव में आकर बस गए।ग्रामीणों के अनुसार गांव खत्म होने के बाद भी 2001 और वर्ष 2011 की जनगणना में विस्थापित लोगों की गिनती रामपुर मशरीक के नाम पर ही की गई। इस गलती का नतीजा यह रहा कि अस्तित्व खत्म होने के बाद भी गांव कागजों पर जिंदा है और प्रधान भी निर्वाचित हो रहे हैं।
सरकारी रिकाॅर्ड में गांव जिंदा होने के कारण यहां प्रधानी का चुनाव होता है और हर साल लाखों का बजट भी एलॉट होता है।बीते सत्र में ही पंचायत निधि से यहां विभिन्न कार्यों में 13 लाख 43 हजार रुपए खर्च किए गए हैं। हालांकि क्षेत्र पंचायत ने इस गांव के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए हैं। प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास सर्वे में भी यह गांव बाहर है।
इस संबंध में बीडीओ शकील अहमद का कहना है कि रामपुर मशरीक गांव रिकॉर्ड में जिंदा हैं।हमें यह जानकारी नहीं है कि यह गांव 27 वर्ष पहले नदी में विलीन हो चुका है।एडीओ (पंचायत) शशि भूषण दूबे का कहना है कि नदी में विलीन होने के बाद भी दो बार उसी गांव के नाम पर गलत जनगणना होने के चलते रिकॉर्ड में है।जब प्रधान चुने जाते हैं तो बजट एलाट होना एक प्रक्रिया है।जहां रामपुर मशरीक के लोग विस्थापित होकर गए हैं, उसी गांव में पैसा खर्च होता है। सुधार के लिए उच्चाधिकारियों को पत्र भेजा जाएगा। ग्राम पंचायत अधिकारी संजय तिवारी ने भी माना कि दो दशक से गलती हो रही है।
बता दें कि 1998 में रामपुर मशरीक गांव सरयू में विलीन हो गया।साथ ही गांव का प्राथमिक विद्यालय भी सरयू में समा गया। रामपुर मशरीक गाव के लोग छपरा सारीव में आकर रहने लगे तो इसी पंचायत में ही बेसिक शिक्षा विभाग ने भी 2005-06 में प्राथमिक विद्यालय का भवन बनवा दिया,लेकिन उसका नाम भी रामपुर मशरीक ही रखा। इसी विद्यालय पर ही विस्थापित लोग पंचायत चुनाव में वोट भी डालते हैं।