भाजपा गाजियाबाद-मेरठ लोकसभा सीट पर बदल सकती है प्रत्याशी,जातिगत समीकरण तय करेंगे दावेदार
भाजपा गाजियाबाद-मेरठ लोकसभा सीट पर बदल सकती है प्रत्याशी,जातिगत समीकरण तय करेंगे दावेदार

07 Mar 2024 |  59




न‌ई दिल्ली।लोकसभा चुनाव का उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। कभी भी चुनावी बिगुल बज सकता है।राजनीतिक पार्टियां फटाफट अपने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर रही हैं।भारतीय जनता पार्टी की पहली सूची में उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में 51 पर प्रत्याशियों के नामों का ऐलान हो चुका है। 29 लोकसभा सीटों पर भी जल्दी ही प्रत्याशियों के नामों का ऐलान हो जाएगा। 29 में 21 लोकसभा सीटों पर भाजपा अपना प्रत्याशी उतारेगी।दो सीटें राष्ट्रीय लोकदल, दो सीटें अपना दल (एस) और एक सीट सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को मिली है।

भाजपा के खाते में आई गाजियाबाद और मेरठ हॉट लोकसभा सीट हैं।चर्चा है कि भाजपा इन लोकसभा सीटों पर नए चेहरों को चुनावी मैदान में उतार सकती है। मेरठ से किसी सेलिब्रिटी को टिकट दिया जा सकता है।वर्तमान में यहां से राजेंद्र अग्रवाल सांसद हैं और लगातार तीन बार से इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।राजेंद्र अग्रवाल भाजपा का बड़ा चेहरा हैं।भाजपा इस बार मेरठ से प्रत्याशी बदलकर चौंका सकती है,हालांकि ऐसे चौंकाने वाले लक्षण क‌ई लोकसभा सीटों पर दिखाई दे सकते हैं।वहीं गाजियाबाद से जनरल वीके सिंह सांसद हैं। वीके सिंह लगातार दो बार से गाजियाबाद के सांसद हैं। इन दोनों ही सीटों पर जातिगत समीकरण के हिसाब से प्रत्याशी उतारे जाएंगे।

सूत्रों के मुताबिक गाजियाबाद और मेरठ लोकसभा सीट पर ठाकुर-वैश्य समाज का वर्चस्व है।दोनों सीटों पर एक-दूसरे के समीकरण को देखते हुए प्रत्याशी तय किए जाएंगे।अगर गाजियाबाद में किसी ठाकुर को भाजपा प्रत्याशी बनाती है तो मेरठ में वैश्य को ही प्रत्याशी बनाया जाएगा और अगर मेरठ से किसी ठाकुर को चुनावी मैदान में उतारा जाता है तो गाजियाबाद पर किसी वैश्य को उतारा जाएगा।अगर गाजियाबाद लोकसभा सीट ठाकुर बिरादरी के हिस्से में आती है तो यहां से अरुण सिंह, संगीत सोम, सतेन्द्र सिसोदिया और ब्रजेश सिंह में से किसी एक के नाम पर ठप्पा लग सकता है।मेरठ में वैश्य समाज के अनिल अग्रवाल, कपिल देव, विकास अग्रवाल, अतुल गर्ग, अमित अग्रवाल और मयंक गोयल का नाम उछल रहा है।गाजियाबाद से केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल का नाम भी लिया जा रहा है।हालांकि वर्तमान सांसद वीके सिंह भी अपने पक्ष में हवा बनाए हुए हैं।

अगर ऐसा होता है तो गाजियाबाद के मतदाताओं को एक बार फिर बाहरी प्रत्याशी के सहारे चुनावी वैतरणी पार करनी होगी। गाजियाबाद के लोगों के नसीब में कम ही ऐसा हुआ है जब उन्होंने अपने समाज के बीच से कोई नेता चुनकर दिल्ली भेजा हो।गाजियाबाद लोकसभा सीट भाजपा का मजबूत किला मानी जाती है। यहां पर चुनाव में साठा चौरासी का समीकरण ही तय करता है कि वह किसे चुनकर दिल्ली भेजे।यहां ठाकुर समाज का बाहुल्य है और रमेश चंद्र तोमर लगातार चार बार भाजपा से सांसद रहे।साल 2008 तक यह हापुड़-गाजियाबाद लोकसभा सीट हुआ करती थी।हापुड़ का यहां से हटाकर मेरठ में शामिल कर दिया गया और गाजियाबाद स्वतंत्र लोकसभा सीट बन गई।रमेश चंद्र तोमर के बाद से यहां लगातार बाहरी लोगों को प्रत्याशी बनाया जाता रहा है।साल 2009 में राजनाथ सिंह ने गाजियाबाद से जीत दर्ज की। साल 2014 और 2019 में वीके सिंह लगातार दो बार भाजपा से सांसद रहे हैं।गाजियाबाद लोकसभा में 5 विधानसभा सीट आती हैं और पांचों पर भाजपा के जीत का परचम लहरा रहा है। साहिबाबाद से विधायक सुशील कुमार शर्मा को हाल ही में यूपी सरकार में मंत्री बनाया गया है।सुशील शर्मा को मंत्री बनाए जाने के पीछे भी ब्राह्मण समाज के वोट को संगठित करके रखना ही उद्देश्य रहा है। क्योंकि ब्राह्मण समाज एक लंबे समय से यहां से संसदीय प्रतिनिधित्व की मांग करता रहा है जो कि भाजपा ने कभी मौका नहीं दिया,लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सुशील शर्मा को मंत्री बनाकर ब्राह्मण समुदाय को खुश करने का प्रयास किया गया है।

इससे पहले के इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो 1984 में केएन सिंह गाजियाबाद से सांसद बने थे। उस समय इंदिरा गांधी की लहर में केएन सिंह ने जीत दर्ज की और केंद्रीय मंत्री भी बने। केएन सिंह भी गाजियाबाद के नहीं थे। केएन सिंह पूर्वांचल से आकर गाजियाबाद से चुनाव लड़ा। 2004 में कांग्रेस के टिकट पर सुरेंद्र गोयल चुनाव जीते थे।सुरेंद्र गोयल गाजियाबाद के विधायक भी रहे हैं। केसी त्यागी जनता दल और भाजपा के गठबंधन पर गाजियाबाद से सांसद रह चुके हैं।एक बार प्रकाशवीर शास्त्री ने निर्दलीय चुनाव जीतकर त्यागी समाज की आवाज बुलंद की थी।अनवार अहमद भी यहां से सांसद रह चुके हैं।अनवार अहमद बुलंदशहर के थे।सुरेंद्र गोयल, रमेश चंद्र तोमर, केसी त्यागी और प्रकाशवीर शास्त्री को छोड़कर गाजियाबाद की दिल्ली में आवाज बुलंद करने के लिए बाहरी नेताओं पर ही निर्भर रहना पड़ा है।

मेरठ लोकसभा सीट की बात करें तो यह बहुत ही संवेदनशील क्षेत्र रहा है।भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल लगातार तीन बार से मेरठ लोकसभा सीट पर भाजपा से सांसद हैं।पिछले चुनाव में बसपा के हाजी याकूब कुरैशी और राजेंद्र अग्रवाल में कांटे की टक्कर हुई थी।राजेंद्र अग्रवाल को 5.86 लाख वोट तो याकूब कुरैशी को 5.81 लाख वोट मिले थे।राजेंद्र अग्रवाल का मुकाबला बसपा से ही रहा है।मेरठ में पांच विधानसभा सीट हैं, जिनमें दो पर सपा ने कब्जा कर रखा है। कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन होने से भाजपा हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही है। भाजपा ने 1996 में मेरठ पहली बार अमर पाल सिंह के बूते अपने खाता खोला था।इसके बाद 1999 में यह सीट अवतार सिंह भड़ाना के मार्फत कांग्रेस के खाते में चली गई थी।

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