सरकारें बदली,बदली सियासत,कायम था कभी बाहुबलियों का दबदबा,अब मुश्किल है टिकट मिलना
सरकारें बदली,बदली सियासत,कायम था कभी बाहुबलियों का दबदबा,अब मुश्किल है टिकट मिलना

18 Apr 2024 |  34




लखनऊ।उत्तर प्रदेश में एक समय था जब बाहुबल के बिना सियासत करना और सत्ता में आना असंभव था,लेकिन समय बदला और समय के साथ चुनावी समीकरण भी बदलता चला गया।कुछ पार्टियां जो बाहुबल के नाम पर सरकार बनाती थी वह भी खुद को बाहुबलियों से अलग दिखी तो कुछ पार्टियां ऐसी भी आईं जिन्होंने अपना चुनावी एजेंडा ही माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई ही रखा।

लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है।दिल्ली का रास्ते तय कराने वाले उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर राजनीति पार्टियों की नजरें है। 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले यूपी के कई समीकरण अब बदल चुके हैं।खासकर बाहुबल।
योगी सरकार ने अपराध और माफिया के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति की बात कही है तो वहीं पूर्व मुख्यमंत्री सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद को 2012 में सरकार बनने के बाद और सरकार जाने के बाद भी खुद को और पार्टी को माफियाओं से अलग रखते हुए आए हैं। अखिलेश यादव पार्टी की साफ सुथरी छवि की कोशिश में लगे हैं।बरहाल सपा बाहुबलियों के परिवार को चुनावी मैदान में उतारती रही है।

बात अगर बाहुबलियों की हो तो एनडीए के घटक दल जेडीयू से टिकट की आस लगाने वाले बाहुबली धनंजय सिंह का जिक्र सबसे पहले होगा।धनंजय सिंह जेडीयू से जौनपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में थे,लेकिन भाजपा ने महाराष्ट्र के पूर्व गृह राज्य मंत्री पूर्व कांग्रेसी कृपाशंकर सिंह को प्रत्याशी बनाकर कयासों पर विराम लगा दिया और धनंजय सिंह की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।बरहाल भाजपा की टिकट की घोषणा के कुछ देर बाद ही सोशल मीडिया पर जौनपुर से चुनाव लड़ने की पोस्ट धनंजय ने सोशल मीडिया पर डाली, लेकिन तीन दिन बाद ही अपहरण के मामले में धनंजय सिंह को सजा हो गई।सजा होने के बाद धनंजय सिंह का लोकसभा चुनाव लड़ने का सपना अधुरा रह गया।धनंजय सिंह 2009 के बाद सियासी पिच पर जम नहीं पाए। 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद से धनंजय सिंह जीत हासिल नहीं कर पाए हैं। 2009 में धनंजय सिंह बसपा से सांसद बने थे।इसके बाद 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में धनंजय सिंह को पराजय का सामना करना पड़ा।धनंजय की दूसरी पत्नी श्रीकला रेड्डी ने 2021 जुलाई में जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर जीत हासिल की।अब श्रीकला रेड्डी जौनपुर से बसपा से चुनावी मैदान में हैं।

सियासत में अगर माफियाओं का जिक्र हो और माफिया मुख्तार अंसारी का जिक्र न हो ये असंभव है।माफिया मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी इस बार लोकसभा चुनाव में सपा से गाजीपुर से चुनावी मैदान हैं।इससे पहले अफजाल अंसारी बसपा से सांसद थे।मुख्तार गैंग के खिलाफ हो रही कार्रवाइयों के बीच चुनाव में अफजाल को इससे फायदा होगा या नुकसान यह समय बताएगा।

आज के प्रयागराज और तब के इलाहाबाद में माफिया अतीक अहमद और उसके परिवार ने भी कई सियासी पारी खेली हैं। माफिया अतीक अहमद और उसके भाई माफिया अशरफ की मौत के बाद अब उसके परिवार से चुनावी दावेदारी आना मुश्किल है क्योंकि अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन उमेश पाल और दो सिपाहियों की हत्या में फरार है।अतीक के दो बेटे उमर और अली जेल में है और भाई अशरफ की पत्नी जैनब फातिमा भी फरार है। वहीं बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमन मणि त्रिपाठी ने हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए हैं।इसके पीछे अमन मणि त्रिपाठी की टिकट मिलने की चाहत बताई जा रही थी,लेकिन टिकट नहीं मिला।

सपा के पूर्व नेता डीपी यादव बाहुबलियों में शुमार है।बदायूं से पश्चिमी यूपी के बाहुबली डीपी यादव की बदायूं से दावेदारी की चर्चा थी।डीपी यादव भाजपा से खुद या अपने परिवारजन को लड़वाने की तैयारी में थे,लेकिन डीपी यादव को सफलता नहीं मिली। वहीं कैसरगंज लोकसभा सीट से बाहुबली सांसद बृजभूषण सिंह की दावेदारी को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है।माना जा रहा है कि बृजभूषण का टिकट कटना लगभग तय है और ऐसे में अगर उनका टिकट कटा तो परिवार से ही दावेदारी आने की प्रबल संभावना है।

बता दें कि पिछले तीन दशक से देखा जाए तो यूपी में पहले जो बाहुबली होते थे वह नेताओं को चुनाव लड़वाते थे।मगर उसके बाद अपराधियों को लगने लगा जब वह नेताओं को चुनाव लड़वाकर जितवा सकते हैं तो खुद चुनाव क्यों नही लड़ सकते। फिर इसके बाद एक दौर आया और सियासत में बाहुबलियों की एंट्री हुई और उनका दबदबा भी कायम रहा।तमाम सरकारें आती और जाती रहीं,लेकिन माफिया मुख्तार और माफिया अतीक अहमद का दबदबा कम नहीं हुआ।पिछले 7 सालों से जो कार्रवाई हुई इसमें केवल जेल भेजने तक नही बल्कि अपराधियों को सजा दिलाने तक की सरकार ने कोशिश की,जिससे अब चुनाव में बाहुबलियों का दबदबा खत्म हो रहा है और सियासत भी बदली है।बाहुबलियों को भी लगने लगा है अब अगर लोगों के बीच आपराधिक छवि लेकर जाते हैं तो सियासत का रास्ता आसान नहीं है। 2019 में माफिया अतीक अहमद से लेकर बाहुबली रमाकांत यादव समेत तमाम बाहुबलियों ने चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई,लेकिन पराजय के साथ सबका दम निकल गया।अब देखना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में जहां एक ओर चुनाव आयोग बाहुबलियों के खिलाफ सख्त है तो वहीं राजनीतिक पार्टियां या तो खुद को अलग रख रहे हैं या उनके खिलाफ कार्रवाई को अपनी प्राथमिकता बता रहे हैं।ऐसे में यह बाहुबली फैक्टर यूपी में कितना चल पाता है।

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