
नई दिल्ली।जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में बैसरन घाटी में 22 अप्रैल को आतंकियों ने हमला करके 26 पर्यटकों की हत्या कर दी।दक्षिण कश्मीर के घने जंगलों में इन आतंकियों की तलाश में बड़े पैमाने पर सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है।अभी तक सुरक्षा बलों को कुछ इलाकों में आतंकियों की मौजूदगी के संभावित संकेत मिले हैं,लेकिन अब भी फरार हैं।आतंकियों को पकड़ने में इतनी देरी क्यों हो रही है,इसका जवाब है दक्षिण कश्मीर का खतरनाक इलाका।
इंडिया टुडे की ओपन सोर्स इंटेलिजेंस टीम ने डिजिटल एलिवेशन मॉडल का उपयोग करते हुए दक्षिण कश्मीर के इलाके की पड़ताल की और पाया कि वहां घने जंगल और खड़ी पहाड़ियां हैं।इस तरह का इलाका आतंकियों के लिए एक नेचुरल कैमफ्लेज (प्राकृतिक आवरण या छिपने में सहायक) की तरह काम करता है।इससे सुरक्षा बलों को उनका पीछा करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है और गहन सर्च ऑपरेशन की जरूरत पड़ती है।
यूएस जियोग्राफिकल सर्वे के अनुसार पहलगाम के पास सबसे ऊंचा पहाड़ माउंट एवरेस्ट की लगभग आधी ऊंचाई का है,जो बैसरन से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर है।यह पहाड़ अपनी 15,108 फीट तक की चोटियों के साथ,इस क्षेत्र में ऊबड़-खाबड़ पर्वत श्रृंखलाओं और पूर्व की ओर घने जंगलों का जाल बनाता है,जहां आतंकी छिपे हो सकते हैं।
बैसरन मेडो (पहाड़ के बीच हरी घास का मैदान) पहलगाम शहर के दक्षिण-पूर्व में स्थित है और यहां तक पहुंचने के लिए घुमावदार रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है,जो नदियों,घने जंगलों और कीचड़ भरे इलाकों से होकर जाता है।इस रास्ते का ज्यादातर हिस्सा ऐसा है,जहां गाड़ियां नहीं जा सकती हैं। आगे पूर्व की ओर बढ़ने पर पर्वतमालाएं 8,104 से 14,393 फीट तक तेजी से ऊपर उठती हैं, जो दाईं ओर ऊंची हैं और इस क्षेत्र को और कठिन भूभाग बनाती हैं।सुरक्षा बल आतंकियों का पता लगाने के लिए इन दुर्गम इलाकों में बड़े पैमाने पर तलाशी और घेराबंदी अभियान चला रहे हैं।
आतंकियों ने इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया है,जम्मू के कठुआ से लेकर दक्षिण कश्मीर तक फैले घने जंगलों का इस्तेमाल आतंकियों ने छिपने और आने-जाने के लिए सुरक्षित गलियारे के रूप में कर रहे हैं।इन पहाड़ी जंगलों में कठोर मौसम चुनौती को और भी बढ़ा देता है,जहां रात में पारा तेजी से नीचे गिरता है।
एक और चुनौती किश्तवाड़ रेंज है,जो पहलगाम की ऊंची चोटियों से जुड़ती है और इस मौसम में यहां कम बर्फबारी हुई है।इस साल बर्फ की कमी के कारण ऊबड़-खाबड़ इलाकों का बड़ा हिस्सा खुला रह गया है, जिससे वह इलाका और चौड़ा हो गया है,जहां अब सुरक्षा बलों को तलाशी करनी पड़ रही है। किश्तवाड़ रेंज आतंकियों को जम्मू की तरफ जाने का रास्ता मुहैया कराती है,जहां घने जंगल और कठिन इलाके उन्हें भागने में मदद कर सकते हैं।हालांकि आतंकियों ने आने-जाने के लिए इस गलियारे का इस्तेमाल किया है,लेकिन सूत्रों का मानना है कि आतंकी अब भी दक्षिण कश्मीर में मौजूद हैं।
इस क्षेत्र की चोटियों पर शंकुधारी वृक्ष लगे हैं,जो 100 से 328 फीट तक की ऊंचाई वाले होते हैं।कश्मीर की ओर हिमालयी चीड़ और स्प्रूस के पेड़ 190 फीट तक ऊंचे होते हैं।जम्मू की ओर ओक के पेड़ 80 फीट तक की ऊंचाई तक पहुंचते हैं,ये जंगल साल भर अपनी हरियाली बनाए रखते हैं,पेड़ों के बीच की दूरी सिर्फ 10 से 20 मीटर होती है,घने जंगल और करौंदे की झाड़ियां इलाके में विजिबिलिटी को बहुत सीमित कर देती हैं।सामान्यतः 30-35 मीटर तक और कुछ क्षेत्रों में 10 मीटर से भी कम तक दूरी तक साफ दिखाई पड़ता है।
भारतीय सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि पहलगाम में पर्यटकों पर हमला करने वाले आतंकी ऐसी भागौलिक परिस्थितियों के लिए ट्रेंड हैं और उन्होंने युद्ध प्रशिक्षण भी प्राप्त किया है।माना जाता है कि आतंकियों में से एक हाशिम मूसा लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा एक पूर्व पाकिस्तानी पैरा कमांडो है,वह अपने सैन्य प्रशिक्षण और सामरिक विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है।खुफिया जानकारी से पता चलता है कि पहलगाम आतंकी हमला सावधानीपूर्वक और योजनाबद्ध तरीके से किया गया था। आतंकियों ने दो महीने पहले सांबा-कठुआ कॉरिडोर के जरिए क्षेत्र में घुसपैठ की थी।
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