धनंजय सिंह स्वराज सवेरा एडिटर इन चीफ यूपी
गोरखपुर पुलिस ने गुंडागर्दी करते हुए प्रॉपर्टी डीलर मनीष गुप्ता की बेरहमी से पिटाई की थी जिसमे मनीष की मौत हो गई।गोरखपुर के बाद एक और मामले में यूपी पुलिस घिर चुकी है।
वैसे एटा पुलिस हमेशा चर्चा में रहती है। मालखाने में रखी लाखों की दारू गायब हो जाती है और बता दिया जाता है चूंहे पी गए।दिव्यांग के ढाबे पर मुफ्त में समझकर रोटी तोड़ने वाले पुलिस कर्मियों से जब दिव्यांग ढाबे वाला पैसा मांगता है तो ये पुलिसकर्मी ढाबे वाले को इस से मारते है जैसे बड़े अपराधी को पकड़ लिया हो,और तो और थाने की पूरी पुलिस फोर्स ढाबे पर पहुंचकर ढाबे वाले सहित लगभग 11 लोगों को पकड़ कर फर्जी मुठभेड़ दिखाती है और अपनी झूठी पीठ थपथपाती है। ऐसे कई मामले है।
मामला एटा जिले का है जहां कथित तौर पर ड्रग्स रखने के आरोप में पुलिस ने 15 साल के नाबालिग लड़के को जेल भेज दिया था।नाबालिक लड़के को 21 सितंबर को तीन महीने बाद जमानत मिली थी और फिर उसने अपनी जान दे दी।अब इस मामले का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान लेते हुए यूपी पुलिस से इस मामले में रिपोर्ट तलब की है।इसकी जानकारी अधिकारियों ने गुरुवार को दी। इसके अलावा आयोग ने अपने जांच विभाग को मामले की मौके पर जांच करने का भी निर्देश दिया है।
एनएचआरसी ने एक बयान में बताया कि उसने एटा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को एक वरिष्ठ रैंक के पुलिस अधिकारी द्वारा आरोपों की जांच करने और चार सप्ताह के भीतर आयोग को कार्रवाई की रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। एनएचआरसी पैनल ने कहा कि उसने एक समाचार क्लिपिंग के साथ उस शिकायत का संज्ञान लिया है, जिसमें 15 वर्षीय नाबालिग लड़के को ड्रग रखने के आरोप में, वयस्क के रूप में जेल भेजा गया। वह इस यातना को सहन करने में असमर्थ था और 21 सितंबर, 2021 को जेल से तीन महीने बाद जमानत पर रिहा हुआ और बाद नाबालिग लड़के ने आत्महत्या कर ली।
बताया गया कि कथित तौर पर लड़के को पुलिस ने ड्रग्स को कब्जे में रखने के संबंध में गिरफ्तार किया था और उसे किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश करने के बजाय जिला कारागार भेज दिया गया था।लड़के के पिता ने कथित तौर पर आरोप लगाया कि उसके बेटे को अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया था और पुलिस द्वारा पैसे की उगाही करने के लिए प्रताड़ित किया गया था।
एनएचआरसी ने एसएसपी को कुछ बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए आरोपों की जांच करने का निर्देश दिया है,जिसमें यह भी शामिल है कि पुलिस ने आरोपी की उम्र और जन्मतिथि का आकलन करने के लिए किस प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा है। किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम (जेजे अधिनियम) के नियम 7 और धारा 94 (सी) के अनुसार, जन्म तिथि उम्र का प्राथमिक प्रमाण है।
पैनल ने पुलिस से पूछा है कि किन परिस्थितियों में किशोर के साथ वयस्क जैसा व्यवहार किया गया। जन्म तिथि के प्रमाण के रूप में मैट्रिक प्रमाण पत्र पर विचार न करना अश्वनी कुमार सक्सेना बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2012) 9 एससीसी 750 के मामले में निर्णय का उल्लंघन है।ऐसे में किन परिस्थितियों में इसे नजर अंदाज किया गया। बयान में कहा गया है कि आयोग ने अपने जांच प्रभाग को मौके पर जांच करने, मामले का विश्लेषण करने और संस्थागत उपायों का सुझाव देने का निर्देश दिया है, जिससे यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार के पास सिफारिश की जा सकती है कि अभियोजन के लिए बच्चों के साथ वयस्क के रूप में व्यवहार नहीं किया जा रहा है।
बयान में कहा गया है कि जांच विभाग को इस मामले में सभी हितधारकों द्वारा निभाई गई भूमिका को देखने का भी निर्देश दिया गया है, जिसमें न्यायाधीश भी शामिल है, जिसके सामने गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर बच्चे को पेश किया गया था और डॉक्टर की भूमिका जिसने बच्चे की जांच की थी। छह हफ्ते के अंदर जांच रिपोर्ट जमा करनी होगी।