असीम अरूण से पहले क‌ई आईएएस व आईपीएस को रास आ चुकी है राजनीति, आओ जानें किसको क्या मिला
असीम अरूण से पहले कई आईएएस व आईपीएस को रास आ चुकी है राजनीति,आओ जानें किसको क्या मिला


18 Jan 2022 |  111





लखनऊ।उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के रणभेरी से पहले कानपुर के पुलिस कमिश्नर रहे असीम अरूण का राजनीति में आना कोई नया नहीं है।इससे पहले भी कई नौकरशाह नौकरशाही को बाय-बाय कर या रिटायर होने के बाद राजनीति में अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। पूर्व तेजतर्रार आईपीएस अधिकारी असीम अरुण और पूर्व आईएएस अधिकारी राम बहादुर रविवार को भगवा खेमे में शामिल होकर भगवामय हो चुके है।असीम अरुण और राम बहादुर के भगवा खेमे में शामिल होने से पहले पूर्व आईएएस अरविंद कुमार शर्मा और उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक बृजलाल भगवा खेमे में शामिल हो गए थे।

पूर्व आईपीएस असीम अरुण रविवार को केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और पार्टी के अन्य नेताओं की मौजूदगी में भगवा खेमे में शामिल हो गए।असीम अरुण ने उस दिन वीआरएस लेने का ऐलान किया था जिस दिन जब 8 जनवरी को उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की रणभेरी का ऐलान हुआ था। तभी से अटकलों की ट्रेन सुपर फास्ट बनकर दौड़ रही थीं कि अरुण को भगवा खेमे द्वारा चुनावी अखाड़े के मैदान में उतारा जा सकता है।अपने गृह जनपद कन्नौज शहर की विधानसभा सीट से चुनावी अखाड़े में ताल ठोक सकते हैं।

आपको बता दें कि असीम अरूण अपनी सेवा के दौरान सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ का विश्वास भरपूर जीता है और उन्हें कानपुर के पहले पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्त करने के लिए चुना था। इनके पिता श्रीराम अरुण 1997 में पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कल्याण सिंह के कार्यकाल के दौरान उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक थे। श्रीराम जिनका अगस्त 2018 में निधन हो गया। श्रीराम के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने ही स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के विचार की कल्पना की थी।

पूर्व आईएएस राम बहादुर बहुजन समाज पार्टी की मुखिया व पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के बेहद करीबी रहे हैं।लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रहते हुए उन्होंने अवैध अतिक्रमणों पर कार्रवाई सहित कुछ बहुत ही कठिन निर्णय लिए थे।कहा जाता है कि राम बहादुर अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग (एससी, एसटी, ओबीसी) और अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी संघ (बामसेफ) के सदस्य रहे हैं,जो कांशीराम द्वारा स्थापित बहुजन समाज पार्टी के वैचारिक स्रोत हैं। राम बहादुर ने 2017 में मोहनलालगंज से बहुजन समाज पार्टी से प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे।

असीम अरुण की तरह ही पूर्व आईपीएस बृजलाल भी 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आने के तुरंत बाद भाजपा में शामिल हो गए थे। वास्तव में अरुण बृजलाल के कहने पर राजनीति में शामिल हुए थे जो अब भाजपा के राज्यसभा सदस्य हैं। बृजलाल 2010-12 में मायावती के कार्यकाल के दौरान उत्तर प्रदेश के डीजीपी भी थे।बृजलाल एक सख्त पुलिस वाले और एक मुठभेड़ विशेषज्ञ की प्रतिष्ठा हासिल की।
सूत्रों के मुताबिक बृजलाल सीएम योगी से लगातार संपर्क में थे,यहां तक ​​​​कि उन्होंने अपराधियों और माफिया के खिलाफ बड़े पैमाने पर कार्रवाई शुरू की।
योगी की कार्रवाई ने विपक्ष की आलोचना की जिन्होंने उनकी ठोको (नॉक डाउन) नीति के लिए उनकी आलोचना की। यहां तक ​​​​कि भाजपा ने एक बेहतर कानून और व्यवस्था की स्थिति का अनुमान लगाया। बृजलाल को राज्य एससी-एसटी आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया जो राज्य मंत्री के बराबर एक पद होता है। 2020 में उन्हें राज्यसभा का टिकट मिला।

1988 बैच के गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी अरविंद कुमार शर्मा के साथ भी ऐसा ही है।शर्मा ने पिछले साल ही वीआरएस लेकर भाजपा में शामिल हो गए था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबियों में माने जाने वाले शर्मा ने गुजरात के मुख्यमंत्री और फिर प्रधानमंत्री कार्यालय में अपने कार्यकाल के दौरान पीएम मोदी के साथ काम किया था। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के मऊ के रहने वाले शर्मा को यूपी विधान परिषद में भाजपा का टिकट मिला है। शर्मा को बाद में यूपी भाजपा का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। शर्मा मीडिया की चकाचौंध से दूर रहना पसंद करते हैं।पीएम मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी सहित पूर्वांचल में सक्रिय रहे हैं।

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह को बागपत से उतारा था।सिंह ने तत्कालीन सांसद और रालोद प्रमुख अजीत सिंह को 2 लाख से अधिक वोटों से हराया। सिंह को बाद में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय में कनिष्ठ मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। सिंह ने 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर से बागपत सीट जीती, इस बार अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी को हराया।

आपको बताते चलें कि उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में नौकरशाहों का पैरा-ड्रॉप होना कोई नई बात नहीं है। 1970 बैच के आईएएस अधिकारी दलित पन्ना लाल पुनिया ने 2005 में सेवा से सेवानिवृत्त होने के बाद कांग्रेस को अपना राजनीतिक आसरा बना लिया।बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के करीबी विश्वासपात्र पुनिया 1995, 1997 और 2002 में मायावती के प्रमुख सचिव रहे हैं। फतेहगढ़ से पुनिया चुनाव लड़े लेकिन बहुजन समाज पार्टी की मीता गौतम से हार गए। कांग्रेस से 2009 के लोकसभा चुनाव में पुनिया बाराबंकी से चुनावी में उतरे और जीत हासिल की। 2014 में पुनिया भाजपा की प्रियंका रावत से हार गए थे।इसके बाद पुनिया को राज्यसभा में ले जाया गया था। मायावती के करीबी माने जाने वाले सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी कुंवर फतेह बहादुर भी बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए थे।

More news