सुल्तानपुर में विरासत नहीं बचा पाईं मेनका गांधी,क्या फिर अपनाएंगी नई सियासी राह
सुल्तानपुर में विरासत नहीं बचा पाईं मेनका गांधी,क्या फिर अपनाएंगी नई सियासी राह

06 Jun 2024 |  186




सुल्तानपुर।मेनका गांधी अपने राजनीतिक जीवन की तीसरी हार से रूबरू हो चुकी हैं। 8 बार से सांसद रह चुकीं मेनका गांधी लोकसभा चुनाव में अपनी विरासत नहीं बचा पाई।भारतीय जनता पार्टी में मेनका गांधी कद पहले ही घट रहा था। ऊपर से बेटे का राजनीतिक पुनर्वास उनके लिए चुनौती है। ऐसे में क्या मेनका गांधी भाजपा से इतर नई सियासी डगर तलाश सकती हैं या फिर इंतजार करेंगी।यह सवाल सुल्तानपुर में खासा चर्चा में है। बरहाल सियासी पंडितों का मानना है कि अच्छा विकल्प न होने के कारण फिलहाल वह भाजपा के रुख में बदलाव का इंतजार कर सकती हैं।

संजय गांधी के निधन के बाद शुरू हुआ मेनका का सियासी सफर

मेनका गांधी ने अपने सियासत की शुरुआत संजय गांधी के निधन के बाद 1982 में ही कर दी थी। मेनका गांधी ने संजय विचार मंच बनाकर कई जगह चुनाव भी लड़ाए थे,लेकिन जब 1984 में मेनका गांधी ने अपना पहला चुनाव अमेठी से हारी तो उन्हें मजबूत सियासी मंच की जरूरत महसूस हुई। इसलिए मेनका गांधी जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से मिलीं और अमेठी में ही उनके संगठन का विलय जनता दल में हो गया।जनता दल का गठन हुआ तो मेनका ऊचंद्रशेखर के साथ ही जनता दल में चली गईं और जनता दल से 1989 में पीलीभीत से चुनाव लड़कर जीती भीं। साल 1991 की रामलहर में मेनका गांधी पीलीभीत से चुनाव हार गईं। उसके बाद से मेनका गांधी ने 1996,1998,1999 में पीलीभीत से निर्दलीय चुनाव लड़ा, जिसमें गैर कांग्रेसी दल और भाजपा का समर्थन मिलता रहा।

2004 में भाजपा में शामिल हुईं थीं मेनका

साल 2004 में मेनका गांधी भाजपा में शामिल हुई और पीलीभीत से भाजपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव भी जीता। 2009 में जब वरुण गांधी राजनीति में आए तो मेनका गांधी ने उन्हें पीलीभीत की कमान सौंपी और खुद आंवला से चुनाव लड़ा। मां बेटे ने जीत हासिल की। 2014 में मेनका गांधी पीलीभीत और वरुण सुल्तानपुर से जीते।

2019 में भाजपा ने मेनका को मंत्रिमंडल में नहीं मिली जगह

2019 में मेनका गांधी और वरुण गांधी ने सीटें अदल-बदलकर जीत हासिल की।इस बीच वरुण गांधी के रिश्ते भाजपा शीर्ष नेतृत्व से बिगड़ते गए और अंततः भाजपा ने इस बार वरुण गांधी टिकट काट दिया। यही नहीं 2014 में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल मेनका का कद घटाते हुए नेतृत्व ने 2019 में दोबारा मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी।

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