लखनऊ।दुनिया के ताकतवर देशों में भारत तेजी से अपना पैर जमाता जा रहा है।चाहे वो सैन्य शक्ति का मामला हो या आर्थिक तौर पर संपन्नता का।अमेरिका और यूरोप का अब तक चीन में निवेश होता था,लेकिन कोराना के बाद अमेरिका और यूरोप ने चीन में निवेश कम कर दिया।यहां तक की पहले से किए चीन में निवेश को भारत सहित अन्य देशों में निवेश करना शुरू कर दिया।इससे चीन को आर्थिक झटका लगने लगा और कोरोना के बाद अब तक चीन की अर्थव्यवस्था उबर नहीं पाई है।इससे चीन एक हद तक भारत से खार खाए हुए है।चीन सीमा पर तनाव पैदा कर भारत पर दबाव बना रहा है कि भारत उसके हितों से न खेले,भारत अपने यहां निवेश लाने का प्रयास न करे।अमेरिका,रूस और यूरोप से भारत के संबंध अच्छे न रहे,भारत उसके अनुसार चले।भारत में भी प्रदर्शनों और आंदोलनों के पीछे चीन का नाम आता रहता है,क्या चीन का मकसद भारत में भी हिंसा भड़काने की है।इस बात का जवाब तो भविष्य में मिलेगा,लेकिन यह तो तय है भारत चीन को कड़ा सबक सिखा रहा है।चीन के लिए भारत में यह करना संभव नहीं लगता,लेकिन चीन भारत के खिलाफ एक ऐसा चक्रव्यूह रच रहा है,जिससे भारत के सभी पड़ोसी उसके गुलाम हों और उसके कहे अनुसार चलें।इसी वजह से चीन अपने और भारत के पड़ोस के सभी देशों को अस्थिर और अशांत कर रहा है।
बांग्लादेश से चीन को क्या थी दिक्कत
ताज़ा उदाहरण बांग्लादेश है।बांग्लादेश में एक ऐसी सरकार थी जो अपने लोगों के लिए स्वतंत्र फैसले ले रही थी।भारत से अच्छे संबंध रख ही रही थी,चीन,अमेरिका और यूरोप से भी संबंधों को मैनेज कर रही थी।भारत,अमेरिका और यूरोप के मानवाधिकारों पर टिप्पणी और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर उठाए गए सवालों पर अपने देश की सुरक्षा भी कर रही थी और जवाब भी दे रही थी।जाहिर है शेख हसीना की सरकार कठपुतली सरकार न होकर स्वतंत्र फैसले ले रही थी। अपने देश के हित में ले रही थी।उदाहरण के तौर पर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 26 जून 2024 को कहा था कि उनका देश भारत और चीन के सीमापार तीस्ता नदी पर जलाशय से संबंधित एक बड़ी परियोजना निर्माण के लिए प्रस्तावों पर विचार करेगा और बेहतर प्रस्ताव को स्वीकार करेगा।हम अपने देश की विकास संबंधी आवश्यकताओं के आधार पर अपनी मित्रता बनाए रखते हैं,लेकिन चीन को यह रास नहीं आ रहा था।इसके पीछे वजह ये थी कि चीन बांग्लादेश में एक ऐसी सरकार चाहता था जो उसके कहे पर चले,उसके हितो के हिसाब से फैसले ले और उसके दोस्तों से दोस्ती रखे और उसके दुश्मनों से दुश्मनी।आरक्षण को लेकर छात्रों का आंदोलन शुरू हुआ तो सत्ता के लिए बंटी राजनीति को साध कर चीन और पाकिस्तान ने बांग्लादेश में खेल कर दिया। चीन और पाकिस्तान का नाम इस साजिश में शामिल होने का कई रिपोर्ट में दावा किया गया है।अब चीन की कोशिश होगी कि बांग्लादेश की नई सरकार उसकी कठपुतली की तरह काम करे।
चीन ने नेपाल में भी ऐसा ही किया था
चीन बांग्लादेश में क्या चाहता है।इसको और अच्छे से समझने के लिए नेपाल की पिछली ओली सरकार को याद करें।चीन के समर्थन से केपी शर्मा ओली ने पिछली बार सरकार बनाई तो भारत से संबंधों को इतिहास के सबसे निचले स्तर पर ले गए।हालत यह हो गई थी कि भारत और नेपाल के नागरिकों तक में कटुता बढ़ने लगी थी।अब एक बार फिर ओली प्रधानमंत्री बने हैं,लेकिन इस बार ओली के पास वैसी ताकत नहीं है जैसे पिछले बार थी,लेकिन चीन हर कीमत पर ओली को सत्ता में बैठाए रखना चाहता है,जिससे नेपाल उसके अनुसार फैसले ले और भारत पर उसके जरिए नजर भी बनाई रखी जा सके, लेकिन भारत चीन के मंसूबों को लगातार पानी फेर रहा है। नेपाल के अन्य राजनीतिक दलों और जनता को यह समझ आ रहा है कि अगर भारत से संबंध खराब हुए तो चीन उनके साथ गुलामों सा व्यवहार करने लगेगा।इसी वजह से वे ओली सरकार को नियंत्रण में रख रहे हैं। हालांकि ओली चीन के इशारों पर अब भी काम कर रहे हैं।
चीन ने श्रीलंका को कर दिया था बर्बाद
यह तो याद ही होगा श्रीलंका की गोटबाया राजपक्षे सरकार के साथ क्या हुआ।गोटबाया राजपक्षे के जरिए चीन ने श्रीलंका की जमीन तक पर कब्जा कर लिया।कर्ज के चक्कर में ऐसा फंसाया कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था ही चरमरा गई और राजपक्षे को भागना पड़ा।श्रीलंका की जनता समझदार थी, उसे समझ आ गया कि यह सब चीन के कारण हुआ तो अगली सरकार ने चीन से दूरी बनानी शुरू कर दी।भारत के खिलाफ राजपक्षे सरकार ने कई फैसले किए थे,लेकिन जब श्रीलंका मुसीबत में पड़ा तो भारत ने दिल खोलकर मदद की और आज श्रीलंका और भारत के संबंध फिर से अच्छे हैं।भूटान और भारत के संबंध ऐतिहासिक रहे हैं।यहां तक की भूटान की रक्षा की जिम्मेदारी भी भारत उठाता है।चीन और भूटान के बीच सीमा विवाद है।चीन की नजर भूटान की जमीन पर है।भारत के रहते चीन ऐसा कर नहीं सकता तो उसने भूटान पर डोर डालने शुरू किए।सीमा विवाद के नाम पर अलग-अलग तरह के प्रलोभन और डर दिखा रहा है,जिससे भूटान उसकी शर्तों पर समझौता कर ले।भूटान के राजा इस बात को समझते हैं, इसलिए वह चीन के जाल में अब तक नहीं फंसे हैं,लेकिन चीन का प्रयास जारी है।चीन चाहता है कि भूटान उसके अनुसार फैसले ले और उसके आदेश को माने जो अब तक भारत के कारण संभव नहीं हो पाया है।
मालदीव की अर्थव्यवस्था चरमराई
चीन की चालबाजी को समझने के लिए मालदीव भी एक बड़ा उदाहरण है।मालदीव में मोहम्मद मुइज्जू की सरकार से पहले जो भी सरकार रही उसके सभी देशों से अच्छे संबंध रहे। भारत से तो रिश्ते हमेशा से ही अच्छे बने रहे।हालांकि चीन से भी मालदीव की सभी सरकारों ने संबंधों को बैलेंस किए रखा। मालदीव शांति से प्रगति की राह पर था,लेकिन चीन ने वहां भी दखल दिया और मोहम्मद मुइज्जू की सरकार प्रोपेगेंडा कर बनवा दी।स्थिति यह हो गई मोहम्मद मुइज्जू ने भारत के खिलाफ जहर उगलना शुरू किया।कुछ दिनों तक भारत ने संबंधों की खातिर बर्दाश्त किया,लेकिन फिर भारत के लोगों ने मालदीव का बॉयकाट करना शुरू कर दिया।अब हालत यह है कि मालदीव की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ना शुरू हो गया है। चीन मालदीव को भी कर्ज के जाल में फंसाएगा और फिर जमीनों पर कब्जा कर लेगा।मालदीव सरकार चीन की कठपुतली बन गई है।
चीन ने पाकिस्तान को बनाया खिलौना
पाकिस्तान तो चीन का पहला प्रयोग था।भारत से अलग होने के बाद पाकिस्तान के नेताओं में जो भारत के प्रति नफरत थी, उसे चीन ने भरपूर भड़काया और अपने हितों के लिए इस्तेमाल किया।भारत अपनी स्वतंत्र नीति के बल पर विकास के रास्ते पर बढ़ता गया और पाकिस्तान नफरत की आग में चीन की गोद में बैठता गया।हालत यह हो गई कि भारत के खिलाफ हर जंग में पाकिस्तान का परोक्ष रूप में साथ देने वाले अमेरिका से भी उसने दुश्मनी कर ली।इससे पहले अमेरिका हर साल पाकिस्तान की आर्थिक तौर पर मदद भी करता था।साथ ही उसके आतंकी कारनामों पर दुनिया को शांत भी कराता था,लेकिन जब पाकिस्तान ने चीन और अमेरिका में से चीन को चुन लिया तो अमेरिका ने भी पाकिस्तान का साथ छोड़ दिया।नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तान का बाल-बाल आज चीन के कर्ज में डूबा हुआ है। पाकिस्तान आईएमएफ से कर्ज की भीख मांग रहा है,जिससे चीन के कर्ज का सूद दे सके।चीन की वजह से ही पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और बलूचिस्तान में विद्रोह हो रहा है। वहां के नागरिक आरोप लगा रहे हैं कि पाकिस्तान ने चीन को उनकी जमीनें और संसाधन बेच दिए हैं।चीन के अधिकारी उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करते हैं।चीन पहले ही पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का एक भाग ले चुका है। अब चीन की नजर पूरे कश्मीर और बलूचिस्तान पर है।
गुप्त सैनिक रखे जा सकते हैं
न्यूजवीक की रिपोर्ट में तो सैटेलाइट तस्वीरों का हवाला दिया गया।इसमें 2022 से 2024 की तस्वीरों से तुलना की गई। चीन ने पिछले 4 साल के भीतर ही 624 गांवों का निर्माण किया है।वॉशिंगटन थिंक टैंक सेंटर फॉर इंटरनेशनल एंड स्ट्रैटेजिक स्टडीज (CSIS) की रिपोर्ट में बताया गया कि 2018 और 2022 के बीच चीन ने 624 गांवों का निर्माण किया है और लगातार इसका काम जारी है।अरुणाचल प्रदेश के पास 4 अलग-अलग जगहों पर ये गांव बसाए जा रहे हैं। अरुणाचल भारत का हिस्सा है जबकि चीन इसे अपना इलाका होने का दावा करता है।ये जो गांव बसाए गए हैं इनमें गुप्त रूप से सैनिक तैनात किए जा सकते हैं।
बढ़ सकता है जोखिम
भारत के साथ चीन के सैनिकों की सीमा विवाद को लेकर झड़प होती रहती है।दिसंबर 2020 में चीन और भारत के सैनिकों के बीच लड़ाई हुई थी। 1962 में दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर युद्ध लड़ा गया।पिछले तीन वर्षों में भी झड़प देखी गई है।सीमा विवाद का कोई स्पष्ट समाधान नहीं दिख रहा।बढ़ते सैन्यीकरण से गलत आकलन का जोखिम अधिक बना हुआ है।पिछले साल याराओ के पास एक नई सड़क और 2 हेलीपैड बनाए गए।याराओ 3900 मीटर की ऊंचाई पर है, वहां भी चीन नई इमारतें बनाने में कामयाब रहा है।चीन तिब्बती और हान आबादी को लेकर भी अलग रुख दिखा रहा है।
पूरी दुनिया पर राज करना चाहता है चीन
चीन पूरी दुनिया पर राज करना चाहता है।यह बात किसी से छिपी नहीं है कि वह विश्व में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है।अपने लक्ष्य के आगे मानवीय मूल्यों,नीति और नैतिकता का चीन के लिए कोई मोल नहीं है। चीन यह भी बखूबी जानता है कि इस पृथ्वी के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली देश बनने के उसके इस लक्ष्य में भारत सबसे बड़ा रोड़ा है।इसलिए कुटिल चीन छल-कपट के सहारे भारत सहित अपने दूसरे दुश्मनों को परास्त करने की साजिश रच रहा है। चीन दुनिया के बाकी देशों के खिलाफ युद्ध लड़ रहा है,लेकिन मुश्किल यह है कि परंपरागत हथियारों के बजाय वह अदृश्य हथियारों का सहारा ले रहा है।दुनिया भर में फैली कोरोना महामारी भी उसका एक हथियार ही थी।
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