राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने के बाद भाजपा करेगी यूपी पर फैसला,योगी मंत्रिमंडल में फेरबदल की भी चर्चा
राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने के बाद भाजपा करेगी यूपी पर फैसला,योगी मंत्रिमंडल में फेरबदल की भी चर्चा

04 Jul 2025 |   34



ब्यूरो धीरज कुमार द्विवेदी 

लखनऊ।महाराष्ट्र,बिहार,मध्य प्रदेश,हिमाचल और उत्तराखंड समेत 22 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश अध्यक्षों की घोषणा कर दी है, लेकिन अभी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष पर कोई फैसला नहीं हुआ है,लेकिन चर्चाओं का बाजार गर्म है।यूपी के भाजपा अध्यक्ष के चुनाव में और देरी होगी क्योंकि किसी एक नेता के नाम पर सहमति की चिड़िया नहीं बैठ पा रही है।कारण सामाजिक और क्षेत्रीय समीकरण भी साधना है। भाजपा को लगता है कि एक ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाया जाए,जिससे समाजवादी पार्टी के पीडीए की काट हो सके,लेकिन एक चिंता ये भी है कि ब्राह्मण समाज सपा से नाराजगी का भी लाभ उठा लिया जाए,जो इटावा मामले से आहत बताया जा रहा है।

पार्टी सूत्रों का कहना है कि ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय अध्यक्ष तय होने के बाद भी प्रदेश यूनिट पर फैसला हो सकता है। इसकी वजह है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के इलेक्शन के लिए कम से कम आधे राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव हो जाना चाहिए। कुल 37 प्रदेश यूनिट्स भाजपा ने देश भर में बना रखी हैं, जिनमें से 22 का चुनाव हो गया है।ऐसी स्थिति में कोरम पूरा है और कभी भी राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हो सकता है।इसीलिए यूपी अध्यक्ष चुनने के लिए नेतृत्व समय भी ले सकता है।इसमें एक पेच यह भी फंसा है कि यदि योगी मंत्रिमंडल में से किसी नेता को अध्यक्ष बनाया गया तो फिर सरकार में भी फेरबदल होगा।

केंद्रीय नेतृत्व चाहेगा कि योगी सरकार में भी समय रहते फेरबदल करके 2027 से पहले कुछ समीकरण साध लिए जाएं।यही वजह है कि अध्यक्ष को लेकर कोई फैसला नहीं हो पा रहा है।स्वतंत्रदेव सिंह,धर्मपाल सिंह लोधी जैसे नेताओं की चर्चा तेज है।फिलहाल मानसून सेशन से पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने पर जोर है। 

यूपी में भाजपा अगर तेजी से अध्यक्ष चुनना चाहे तो भी पहले वोटर लिस्ट घोषित करनी होगी।फिर नामांकन की तारीख तय होगी और उसे वापस लेने का समय देना होगा। अंत में एक ही कैंडिडेट होने पर नाम की घोषणा हो जाएगी,लेकिन इस प्रक्रिया में भी कम से कम चार दिन लगेगा।

भाजपा के आंतरिक चुनाव की नियमावली के अनुसार हर विधानसभा से एक सदस्य वोट करता है। इस तरह 403 विधानसभाएं हैं तो फिर बड़ी संख्या में मेंबर हो गए। इसके अलावा 20 फीसदी सांसद और विधायक भी हिस्सा लेते हैं। जिलाध्यक्ष चुनाव में मौजूद रहते हैं,लेकिन उनके पास वोट का कोई अधिकार नहीं रहता। इस तरह इतने लोगों का नाम वोटर लिस्ट में डालना होगा और मतदान कराना एक लंबी प्रक्रिया होगी।

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