लखीमपुर खीरी।पंचायत चुनाव की आहट ने कांवड़ यात्रा का जबरदस्त जोश बढ़ा दिया है।पंचायत चुनाव में प्रधान और प्रधान पद के प्रत्याशी अपने यहां से कांवड़ियों को जल भरने और छोटी काशी गोला में महादेव का जलाभिषेक करने अपने खर्च पर भेज रहे हैं।कांवड़ियों की इस सेवा में सभी धर्मों के लोग शामिल हैं।
छोटी काशी गोला में सावन के दूसरे सोमवार को तीन लाख से अधिक कांवड़ियों ने महादेव का जलाभिषेक किया।अभी तक लगभग आठ लाख कांवड़िये छोटी काशी पहुंच चुके हैं।ये अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है।कांवड़ियों बढ़ती संख्या के पीछे गांवों से आने वाले कांवड़ वाहन हैं।निघासन,भीरा,धौरहरा और ईसानगर क्षेत्र से सैकड़ों वाहन गोला पहुंच रहे हैं।इन वाहनों पर बाकायदा बैनर लगा होता है,जिसमें कांवड़ वाहन भेजने वाले का नाम भी लिखा होता है।ये प्रधान पद के प्रत्याशी हैं जो अपने खर्च पर कांवड़ियों को पुण्य लाभ करवा रहे हैं।
धौरहरा इलाके के अदलिसपुर गांव से पिछले साल तक एक या दो ट्राली से कांवड़िए गोला जाते थे।हालांकि इस बार अब तक इस गांव से दूसरे सोमवार तक आठ ट्रालियां भेजी जा चुकी हैं। इन ट्रालियों को भेजने वाले नफीस ने बताया कि अभी 16 ट्राली और भेजने की तैयारी है।
नफीस कहते हैं कि पिछले चुनाव में वह कम वोट से प्रधानी का चुनाव हार गए थे,लेकिन इस बार सेवा में कोई कमी नहीं रहेगी।निघासन ब्लाक के नौवना गांव से भी चार ट्राली अब तक आई हैं।इनके साथ 200 से ज्यादा कांवड़िये हैं। इन कांवड़ियों को भेजने वाले अखिलेश गांव के वर्तमान प्रधान हैं।
अखिलेश ने बताया कि वह यह सब श्रद्धा व भक्ति के लिए कर रहे हैं।इससे पहले भी ट्राली भेजते थे,लेकिन इस बार गांव के लोगों की मांग ज्यादा है।
इन ट्रालियों को कांवड़ियों के साथ भेजने में प्रधानों व प्रधान पद के प्रत्याशियों का लगभग 60 हजार रुपये खर्च होता है। यह खर्च तब है,जब ट्रैक्टर ट्राली और ड्राइवर गांव का ही हो।
जालिमनगर पुल से गोला तक लगभग 58 हजार का खर्च आ रहा है जबकि बिजुआ से गोला तक यही खर्च 35 हजार हो जा रहा है।इसमें डीजे,लाइट,भोजन-भंडारा,झाकियों पर सबसे ज्यादा खर्च आ रहा है।प्रधान और प्रधान पद के प्रत्याशी यहां खर्च करने से कतरा नहीं रहे हैं।
छोटी काशी गोला में यात्रा प्रबंधन संभाल रहे नगर पालिका गोला के अध्यक्ष विजय शुक्ला रिंकू ने बताया कि इस बार ग्रामीण क्षेत्रों से रिकार्ड तोड़ कांवड़िये आ रहे हैं। सावन में इनका आना पहले रविवार और सोमवार को रहता था,लेकिन अब सातों दिन कांवड़िये आ रहे हैं। इसके पीछे वजह यह है कि गांवों से कांवड़ियों के साथ आने वाली ट्रालियों की रविवार व सोमवार को कमी पड़ रही है।