स्वाभिमानी कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार
धनंजय सिंह स्वराज सवेरा एडिटर इन चीफ यूपी

काकोरी ट्रेन डकैतीकांड के अभियुक्त ठाकुर रोशन सिंह हंसते हंसते फाँसी के फंदे पर झूल गए थे। 2 साल बाद उनकी लड़की विवाह योग्य हुई ,तो रोशन सिंह की पत्नी को उसके विवाह की चिंता सताने लगी।बहुत तलाश करने पर एक जगह लड़की का रिश्ता पक्का हो गया ,लेकिन उस इलाके का दरोगा बड़ा ही संवेदनहीन और निष्ठुर था।उसने लड़के वालों को बहका दिया कि क्रांतिकारी की लड़की से शादी करोगे तो तुम्हें भी देशद्रोही समझा जाएगा।इस बात की भनक एक संपादक को लगी, तो वह उस गांव मे

29 Nov 2020 |  501



धनंजय सिंह स्वराज सवेरा एडिटर इन चीफ यूपी

काकोरी ट्रेन डकैतीकांड के अभियुक्त ठाकुर रोशन सिंह हंसते हंसते फाँसी के फंदे पर झूल गए थे। 2 साल बाद उनकी लड़की विवाह योग्य हुई ,तो रोशन सिंह की पत्नी को उसके विवाह की चिंता सताने लगी।बहुत तलाश करने पर एक जगह लड़की का रिश्ता पक्का हो गया ,लेकिन उस इलाके का दरोगा बड़ा ही संवेदनहीन और निष्ठुर था।उसने लड़के वालों को बहका दिया कि क्रांतिकारी की लड़की से शादी करोगे तो तुम्हें भी देशद्रोही समझा जाएगा।इस बात की भनक एक संपादक को लगी, तो वह उस गांव में पैदल गये और दरोगा को बहुत लताड़ा- क्या तुम्हारे कोई बहिन बेटी नहीं है दरोगाजी?किसी बेटी की शादी रोकने से बड़ा कोई पाप नहीं है।
उन पत्रकार महोदय के व्यक्तित्व और बाणी का इतना अधिक प्रभाव दरोगा पर हुआ कि उस दरोगा ने न केवल उनसे क्षमा मांगी बल्कि उस लड़की के विवाह का भी अधिकांश व्यय स्वयम उठाने को तैयार हो गया। उस दरोगा ने लड़के के घर जाकर अपनी भूल को स्वीकार किया और लड़की की प्रसंशा करके शादी में हर प्रकार का सहयोग देने का भी आश्वासन दिया।जब कन्यादान का समय आया तो लड़की के पिता का प्रश्न खड़ा हुआ। तब उन्हीं संपादक महोदय ने कहा- रोशन सिंह के स्थान पर मैं ही लड़की का पिता हूं ।लिहाजा कन्यादान भी मैं ही करूंगा।
रोशन सिंह की लड़की का कन्यादान करने वाले वह संपादक महोदय और कोई नहीं सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी गणेशशंकर विद्यार्थी थे।
एक पत्रकार के नाते उनकी कर्तव्यनिष्ठा का एक और प्रेरक प्रसंग याद आ रहा है कृपया इसे भी देख लें।
उन दिनों गणेश शंकर विद्यार्थी कानपुर से प्रताप अखबार निकालते थे ।अपने इस पत्र के माध्यम से हुए शोषण- नीति की वे डटकर निंदा करते थे ।अंग्रेज सरकार और देशी नरेश "प्रताप" अखबार और उसके संपादक विद्यार्थी जी से रुष्ट रहते थे।
एक बार ग्वालियर शासन के विरुद्ध प्रताप अखबार ने एक प्रखर टिप्पणी निकाली। ग्वालियर के तत्कालीन महाराजा सिंधिया उसे देखकर तिलमिला उठे। महाराजा ने इसकी शिकायत विद्यार्थी जी के पिता बाबू जय नारायण लाल से की, जो कि ग्वालियर राज्य में ही अध्यापक थे।
जय नारायण जी बड़े सरल प्रकृति के थे ।उन्होंने विद्यार्थी जी को ग्वालियर बुलवाया और महाराजा से क्षमा याचना करने का आग्रह किया। इस पर विद्यार्थी जी ने पिता जी से कहा- आप नौकरी छोड़कर कानपुर रहिए।"प्रताप अखबार के संपादक के नाते मेरा जो कर्तव्य है, उसे मैं कभी नहीं छोड़ सकता।
इस पर उनके पिताजी ने उन्हें एक बार महाराजा से मिल लेने को कहा। विद्यार्थी जी उनके पास गए और महाराजा से बोले - आदेश करें ।
महाराजा ने उनसे आग्रह किया कि यदि वे भविष्य में ग्वालियर शासन की कड़ी आलोचना न करें तो उन्हें इसका प्रतिदान मिल सकता है ।यह सुनकर विद्यार्थी जी ने उत्तर दिया- महाराजा साहब,ग्वालियर राज्य के अध्यापक बाबू जय नारायण लाल के पुत्र के नाते मैं ग्वालियर राज्य के प्रति निष्ठावान रहूंगा।परंतु प्रताप अखबार के संपादक के नाते मेरे जो कर्तव्य हैं उनके पालन के लिए मैं विवश हूँ।
ऐसे चरित्रवान, स्वाभिमानी और कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, वीर बलिदानी श्री गणेश शंकर विद्यार्थी को कोटि कोटि नमन।

विद्यार्थी जी कभी भी मर नहीं सकते
क्योंकि वे तो पत्रकार के रूप में अमर हैं।

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