संताल हूल दिवस 2022: संताल हूल में दुमका के सुंदर मांझी का भी अहम योगदान,लेकिन आज भी हैं गुमनाम: धनंजय सिंह
संताल हूल दिवस 2022: संताल हूल में दुमका के सुंदर मांझी का भी अहम योगदान,लेकिन आज भी हैं गुमनाम: धनंजय सिंह

30 Jun 2022 |  192





लखनऊ।संताल हूल 1855-1856 अविभाजित बंगाल प्रेसिडेंसी की एक बड़ी ऐतिहासिक घटना थी।विद्रोह में जनजातियों, पिछड़ों और दलितों की सम्मिलित भागीदारी का नेतृत्व करने वाले सिदो और कान्हू और उनके कई क्रांतिकारी नायकों ने विश्व के विशालतम साम्राज्यवाद को खुली चुनौती दी और इसका सशस्त्र प्रतिवाद किया।महज भारत में ही नहीं,बल्कि विदेशों में भी इसकी गूंज सुनाई पड़ी।कई चिंतकों, विद्वानों और लेखकों ने इस पर टीका-टिप्पणी की।

सात महीने तक चला गुरिल्ला युद्ध

समाजवादी चिंतक कार्ल माक्र्स ने अपनी प्रख्यात रचना नोट्स ऑन इंडियन हिस्ट्री (664-1858) में इसका उल्लेख किया और स्पष्ट किया कि सात महीने तक गुरिल्ला युद्ध के बाद फरवरी 1856 में इसका दमन किया गया।द इलस्ट्रेटेड लंडन न्यूज, लंदन के मुताबिक सात महीने तक संघर्ष होता रहा पर किसी के द्वारा आत्मसमर्पण करने की कोई घटना नहीं हुई।जनरल लॉयड और ब्रिगेडियर-जनरल बर्ड के नेतृत्व में 14 हजार से अधिक सैनिकों की सक्रिय कार्रवाई के बल पर कंपनी शासन विद्रोह का दमन करने में कामयाब हुई।इससे स्पष्ट है कि सशस्त्र चुनौती का शंखनाद करने के पूर्व बहुत बड़े पैमाने पर तैयारी ही नहीं, बल्कि इसके लिए रणनीति भी निर्धारित की गई।

रात्रिकालीन बैठकों में विद्रोह के महानायकों की अहम भूमिका

विभिन्न ऐतिहासिक दस्तावेजों में नॉकचरनल मिटिग्स (रात्रिकालीन बैठक) का उल्लेख है।इससे साफ है कि कथित रणनीति निर्धारित और रात्रिकालीन बैठकें आयोजित करने में विद्रोह के महानायकों (सिदो, कान्हू, चांद और भैरो) के अलावा कई अन्य क्रांतिकारी नायकों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका थी जैसा कि कोलकाता से प्रकाशित होने वाले समकालीन विभिन्न समाचार पत्रों की रिपोर्टिंग से पता चलता है।इस संबंध में द हिंदू पैट्रीओट, द बंगाल हरकारू, द फ्रेंड ऑफ इंडिया, संवाद प्रभाकर, समाचार सुधादर्शन और संवाद भाष्कर आदि समकालीन समाचार पत्रों के विभिन्न प्रकाशित अंक विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

कई इतिहासकारों की रचनाओं में सुंदर मांझी की चर्चा नहीं

प्रसिद्ध इतिहासकार केके बसु (1934), केके दत्त (1934, 1940, 1957,1970,1976) और पीसी राय चौधरी (1962, 1965) की प्रख्यात रचनाओं में गंगाधर, मानिक संताल, वीर सिंह, वीर सिंह मांझी, कोले प्रामाणिक, डोमन मांझी, मोरगो राजा आदि का उल्लेख है पर चांदराय, सिंगराय, विजय मांझी, संताल कोवलिया, राम मांझी आदि का उल्लेख नहीं है।संताल विद्रोह 1855-1856 के बाद रेंट एजिटेशन 1860-1861 में भी सक्रिय योगदान करनेवाले सुंदर मांझी और उनकी क्रांतिकारी भूमिका का उल्लेख भी इतिहास की पुस्तकों में नहीं है।साम्रज्यवादी इतिहासकारों विलियम बिल्सन हंटर (1868,1877) , सीइ बकलैंड (1901), एफबी ब्रेडले-बर्ट (1905), एलएसएस ओमैली (1910) के अलावा भारतीय इतिहासकार केके बसु, केके दत्त और पीसी राय चौधरी आदि की प्रख्यात रचनाओं में भी सुंदर मांझी की चर्चा नहीं है।

क्रांतिकारी और संघर्षशील नायक थे सुंदर मांझी

आपको बता दें कि झारखंड के दुमका के सुंदर मांझी भी एक बड़े क्रांतिकारी और संघर्षशील नायक थे।सुंदर मांझी केवल संताल हूल में ही महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभायी,बल्कि संताल विद्रोह 1855-1856 के बाद संताल परगना की कई ऐतिहासिक घटनाओं में भी अपना अहम योगदान दिया।संताल हूल 1855-1856 के बाद रेंट एजिटेशन 1860-1861 में भी सुंदर मांझी की बड़ी भूमिका थी।ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि सुंदर मांझी संताल हूल के एक बड़े सक्रिय, जुझारू और क्रांतिकारी नायक थे।महज संतालों पर ही नहीं बल्कि दलित, पिछड़ों आदि अन्य स्थानीय लोगों पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी। सुंदर मांझी की चारित्रिक विशिष्टताएं बड़ी बजोड़ थीं।इसलिए अंग्रेजों की गिरफ्त से बच निकलने में कामयाब हुए। सुंदर मांझी काफी सक्रिय और कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपने मिशन को सफल करने में बड़े माहिर थे और उनके नेतृत्व में बड़ा जबरदस्त प्रतिवाद हुआ।अंग्रेज अधिकारी किसी तरह विद्रोह के दमन के दौरान सुंदर मांझी को गिरफ्तार करने में कामयाब हो ग‌ए।सुंदर मांझी पर मुकदमा चलाया गया और फांसी की सजा दी गयी।अभिलेखीय दस्तावेजों से पता चलता है कि गले में रस्सी लगने के बाद भी सुंदर मांझी भागने में कामयाब हो गए और बच गए।

संताल विद्राेह के दमन के बाद सुंदर मांझी का रूतबा रहा कायम

अंग्रेजों ने उन्हें एक कुख्यात व्यक्ति कहा था। सुंदर मांझी संतालों में एक बड़े नायक के रूप में प्रख्यात हो ग‌ए। संताल विद्रोह के दमन के बाद भी एक नायक के रूप में सुंदर मांझी का रूतबा कायम रहा,क्योंकि वे संतालों के खिलाफ होने वाले अन्याय और अत्यचार की खिलाफत करते रहे।ये सुंदर मांझी की लगातार संघर्ष करने और लड़ाकू प्रवृति का द्योतक था। ऐसे जनजातीय नायक का इतिहास के पन्नों में उल्लेख नहीं होना बड़ा ही आश्चर्यजनक है।प्रामाणिक ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि लगान की समस्या और इसकी ऊंची दरों के खिलाफ आंदोलन (1861) में भी सुंदर मांझी ने बड़ी सक्रिय भूमिका निभायी और बेखौफ होकर अंग्रेज अधिकारियों का प्रतिवाद किया।

जनआंदोलन की रूपरेखा बनाने का उद्देश्य

विशेषकर हंडवा परगने (खड़कपुर, मुंगेर जिला बिहार) में लगान की ऊंची दरों के खिलाफ संतालों के आंदोलन की सुंदर मांझी ने नेतृत्व किया और संतालों ने दुमका के सहायक कमिश्नर टेलर को लगान की ऊंची दरों के खिलाफ लिखित शिकायत की थी।टेलर द्वारा कुछ नहीं किए जाने पर सुंदर मांझी ने बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर, कलकत्ता के पास जाने का निश्चय किया।सुंदर मांझी, डोमा मांझी और अन्य लोगों का डेपुटेशन कृष्णनगर होते हुए कलकत्ता ग‌ए।इनका मुख्य उद्देश्य नील विद्रोह की रणनीति की जानकारी लेनी थी जो उस समय नदिया जिले में काफी लोकप्रिय हो गया था।संभवत: ऐसा जनआंदोलन की रूपरेखा बनाने के उद्देश्य से किया गया था,लेकिन सुंदर मांझी लेफ्टिनेंट गवर्नर से नहीं मिल सके और खाली हाथ लौटना पड़ा,लेकिन अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा और संतालों की मनोदशा और साहस को बढ़ाने के लिए ये प्रचारित कर दिया कि अपने मिशन में कामयाब हो ग‌ए। सुंदर मांझी ने कहा कि लॉर्ड साहिब ने कहा कि उनके अधिकारियों को एक रुपया में दो या चार आना से अधिक लगान बढ़ाने का अधिकार नहीं है।

सुंदर मांझी को बिना शर्त किया रिहा

बर्दवान और संताल परगना के अंग्रेज अधिकारियों ने संतालों की शिकायतों को जायज बताया था।संताल 1855-1856 के विद्रोह को भूले नहीं थे और उनका लक्ष्य जन आंदोलन की रणनीतिक पहलुओं को समझना था।दूसरी ओर लगान की दर चार आना कर दी गई और संताल इसके लिए राजी भी हो ग‌ए।इसी आधार पर गिरफ्तार सुंदर मांझी को बिना शर्त रिहा कर दिया गया। इस प्रकार सुंदर मांझी संतालों के अकेले ऐसे नायक थे जिन्होंने संताल हूल 1855-1856 में ही अहम भूमिका नहीं निभायी, बल्कि 1861 में लगान की दर में ऊंची दरों के खिलाफ आंदोलन में भी संतालों की अगुवाई की और इसमें महत्वपूर्ण योगदान किया।

संताल हूल में सुंदर मांझी का नहीं है जिक्र

इस प्रकार इन गुमनाम नायक सुंदर मांझी ने संताल परगना में विदेशी शासन का जबरदस्त प्रतिवाद ही नहीं किया, बल्कि स्थानीय लोगों को भी संगठित कर उन्हें विदेशी शासन का प्रतिवाद करने की प्रेरणा भी दी, लेकिन अधिकांश प्रकाशनों के अलावा सरकारी प्रकाशनों में भी संताल हूल के नायक सुंदर मांझी का उल्लेख नहीं है। ऐसे में सुंदर मांझी की क्रांतिकारी गाथाएं विस्मृत हो गयी और खुद भी गुमनाम हो ग‌ए।इसलिए संताल विद्रोह के क्रांतिकारी सेनानी सुंदर मांझी और उनकी क्रांतिकारी उपलब्धियों की जानकारी अधिकांश लोगों को नहीं है। क्रांतिकारी सुंदर मांझी के अलावा और भी ऐसे कई क्रांतिकारी नायक हैं जो अभिलेखागारों के सरकारी दस्तावेजों में कैद हैं।केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी योजना आजादी का अमृत महोत्सव के तहत देश के गुमनाम नायकों की चर्चा और उनकी उपलब्धियों पर टीका-टिप्पणी प्रशंसनीय और गौरवशाली है।

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