महाराष्ट्र के बाद क्या झारखंड में गिरेगी सरकार,समझें क्यों झामुमो-कांग्रेस गठबंधन पर मंडरा रहे संकट के बादल: धनंजय सिंह
महाराष्ट्र के बाद क्या झारखंड में गिरेगी सरकार,समझें क्यों झामुमो-कांग्रेस गठबंधन पर मंडरा रहे संकट के बादल: धनंजय सिंह

12 Jul 2022 |  180





लखनऊ।महाराष्ट्र में शिवसेना,कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन की सरकार धराशाई हो ग‌ई।महाराष्ट्र के बाद अब सियासी पंडितों की नजर देश के पूर्वी छोर वाले राज्य झारखंड में इस समय चल रहे घटनाक्रम पर जाकर टिक गई हैं।जहां एक तरफ झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके करीबियों पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)अपना शिकंजा कसती जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर राष्ट्रपति चुनाव को लेकर गठबंधन सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस में दूरियां भी बढ़ती हुई दिखाई दे रही है।देश के कई हिस्सों में मानसून की भारी बारिश हो रही है तो वहीं झामुमो और कांग्रेस सरकार पर खतरे के सियासी बादल मंडरा रहे हैं।

सत्ताधारी गठबंधन के सहयोगी इस तरह की आशंका को भले ही नकारते हुए सब कुछ सही सलामत होने का पूरा दम भर रहे हैं,लेकिन राजधानी रांची और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सियासी गलियों में झारखंड की ढाई साल पुरानी सरकार को लेकर कई तरह के कयास लगना शुरू हो ग‌ए हैं।राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा का जबरदस्त आदिवासी दांव इसका एक बड़ा कारण है।एनडीए ने राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को उतारकर झारखंड में गठबंधन सहयोगियों में जबरदस्त दरार पैदा कर दी है।

झारखंड में आदिवासी समाज की बड़ी आबादी

आपको बता दें कि झारखंड में आदिवासी समाज की बड़ी आबादी है।राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू के नाम की घोषणा से पहले विपक्षी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन करने वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा आदिवासियों के सहारे ही राजनीति करती आ रही है।ऐसे में झामुमो लिए झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ यशवंत सिन्हा को वोट करना टेढ़ी खीर हो गया है।कांग्रेस चाहती है कि सोरेन 2012 की तरह इस नैरेटिव को दरकिनार कर यशवंत सिन्हा का साथ दें। 2012 में झारखंड में भारतीय जनता पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार थी। भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रपति चुनाव में आदिवासी नेता पीए संगमा को उम्मीदवार बनाया था,लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा ने यूपीए उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को वोट किया था।अब ये सवाल उठ रहा है कि अगर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 2012 में पीए संगमा को दरकिनार किया था तो इस बार द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ क्यों नहीं जा सकता है।सियासी पंडितों की मानें तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ जाना इसलिए मुश्किल है,क्योंकि सिबू सोरेन परिवार के साथ द्रौपदी मुर्मू का रिश्ता मधुर है। 2012 के राष्ट्रपति चुनाव के कुछ ही महीने बाद ही झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ लिया था।कुछ समय के लिए राष्ट्रपति शासन लगा और बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी।अब कयास लग रहा हैं कि क्या एक बार फिर झारखंड में 10 साल पुराना इतिहास दोहराया जाएगा।

2017 में बिहार में हुआ था बदलाव

झारखंड का पड़ोसी राज्य बिहार है। बिहार में भी पांच साल पहले राष्ट्रपति चुनाव के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ था। 2017 में आरजेडी के साथ मिलकर सरकार चला रहे सुशासन बाबू नीतीश कुमार ने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को ये कहते हुए समर्थन दिया था कि बिहार के राज्यपाल सर्वोच्च संवैधानिक पद पर जाएंगे,लेकिन कुछ समय बाद ही सुशासन बाबू नीतीश कुमार ने महागठबंधन को दरकिनार करते हुए दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार बना ली थी।

राज्यसभा चुनाव में दिख चुकी है कड़वाहट

कांग्रेस और आरजेडी के नेता खुलकर बोलने में कन्नी काट रहे हैं, लेकिन कई नेता अनौपचारिक बातचीत में बेचैनी और चिंता जरूर जाहिर करते हैं।गठबंधन दलों के बीच बढ़ती हुई दूरी का ही परिणाम है कि एक तरफ जहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके करीबियों पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)शिकंजा कस रही है तो वहीं कांग्रेस और आरजेडी इसका अधिक विरोध करती हुई नजर नहीं आ रही है।हाल ही में राज्यसभा चुनाव के समय भी कड़वाहट सबके सामने आ गई थी,जब सोनिया गांधी से मुलाकात के बावजूद हेमंत सोरेन ने बिना कांग्रेस को विश्वास में लिए उम्मीदवार की घोषणा कर दी थी।

More news