सूख रही दूध की धार:21वीं पशुगणना के आंकड़े जारी,पांच साल में कम हो गईं 66000 भैसें
सूख रही दूध की धार:21वीं पशुगणना के आंकड़े जारी,पांच साल में कम हो गईं 66000 भैसें

29 Dec 2025 |   29



 

हाथरस।उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में हुई 21वीं पशुगणना का आंकड़ा चौंका रहा है।कुल पशु संख्या में बढ़ोतरी तो हुई हैं, लेकिन मुख्य दुधारू पशु भैंस की संख्या 66 हजार कम हुई है।गायों की संख्या में पांच साल में लगभग दो लाख बढ़ी है। भैंस की संख्या में यह गिरावट बता रही है कि लोगों का पशुपालन से दिल उचट रहा है,इसका सीधा असर दूध उत्पादन और आपूर्ति पर भी पड़ेगा।

ये इसलिए चिंताजनक है कि पशुपालक बिक्री लिहाज से भैंस पालन करते हैं।गायों को लोग अपने घर-परिवार के जरूरत के हिसाब से पालते हैं।भैंस का दूध गाढ़ा होता है और इसमें घी भी अधिक निकलता है।डेयरियों से लेकर घरों तक इसकी मांग ज्यादा होती है।गाय का दूध हल्का होता है,लेकिन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।

इससे पहले साल 2019 में 20वीं पशुगणना के आंकड़े जारी किए गए थे। 21वीं पशुगणना 25 अक्टूबर 2024 से शुरू होकर अप्रैल 2025 तक चली। अब इसके आंकड़े सामने आए हैं।पांच साल पहले हाथरस जिले में कुल 6.81 लाख पशु थे,इसमें गाय-भैंस की संख्या 5.25 लाख थीं।बकरी,भेड़, सुअर आदि की कुल संख्या 1.56 लाख थी। इस बार हुई पशु गणना के मुताबिक जिले में लगभग 7.05 लाख पशु हैं, जिनमें 4.04 लाख भैंस और 1.23 लाख गायें हैं। इस बार गाय,भेड़ और बकरियों की संख्या बढ़ी है। पशुपालन विभाग ने इसका पूरा ब्योरा राज्य सरकार को भेज दिया है।

21वीं पशुगणना पूरी हो चुकी है।इसकी रिपोर्ट शासन को भेजी जा चुकी है।जिले में भैंसों की संख्या में 66 हजार की बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। दुधारू पशुओं की संख्या तेजी से कम हो रही है।-डॉ.विजय सिंह यादव, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी।

अब पशुओं को रखने के लिए जगह नहीं बची है। खेत खाली नहीं रहते, जिससे पशुओं को पेट भरने के लिए चारा नहीं मिल पाता। चारा काफी महंगा हो गया है। इस क्षेत्र में आलू के अलावा अन्य ऐसी फसलें नहीं होतीं, जिनसे सस्ता चारा मिल सके। मजबूरी में बाहर से चारा मंगाना पड़ता है। इसी वजह से कई लोगों ने पशुपालन करना ही बंद कर दिया है।-राम प्रकाश, पशुपालक, सहपऊ

पहले और अब में काफी फर्क आ गया है। पहले गेहूं की फसल कटने के बाद छह महीने तक खेत खाली रहते थे, जिससे गाय-भैंस को चराने में आसानी होती थी। पशु खुले में चरते और चलते थे, जिससे दूध उत्पादन भी अच्छा रहता था। अब कोई भी जमीन खाली नहीं छोड़ता, जिससे पशुओं को चराना एक बड़ी समस्या बन गई है।-श्याम, पशुपालक, दौहई

दुधारू पशुओं की संख्या में कमी की मुख्य वजह बदलता परिवेश है।ग्रामीण इलाकों में चारागाह की भूमि हो गई है। बाहर से खरीदने पर चारा और भूसा महंगा पड़ता है। पशुपालन में होने वाला खर्च ज्यादा है और इससे होने वाली आय स्थिर है।दूसरी बड़ी वजह पशुओं की चोरी है।एक भैंस की कीमत एक लाख से अधिक होती है और मवेशी चोर इन्हें चोरी कर ले जाते हैं।मीट के लिए भी इनका कटान हो रहा है।

पांच साल में गायों की संख्या लगभग दो लाख बढ़ी है। पशुपालन विभाग का कहना है कि सरकार नंदनी कृषक समृद्धि योजना, मिनी नंदिनी कृषक समृद्धि और स्वदेश गो संवर्धन योजना चला रही है। गायों की नस्लों के सुधार पर भी काम चल रहा है। धार्मिक मान्यताओं और स्वास्थ्य कारणों के चलते भी कुछ लोग भैंस की जगह गाय पाल रहे हैं।

ये हैं अनुमानित आंकड़े

पशु  20वीं गणना  21वीं गणना
भैंस -4.04             3.38
गाय -1.21             1.23
भेड़ - 04                 08
बकरी -81               83
(गाय-भैंस की संख्या लाख में, भेड़-बकरी की हजार में)

6.21 लाख थीं 20वीं पशुगणना में पशुओं की संख्या

7.05 लाख हुई 21वीं पशुगणना में पशुओं की संख्या

66 हजार भैंसें कम हो गईं पिछले पशुगणना के मुकाबले

02 लाख गायें बढ़ गईं पिछले पांच साल के मुकाबले

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