ब्यूरो धीरज कुमार द्विवेदी
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में जातियों के सम्मेलनों पर लगी रोक के बाद अब राजनीतिक दल आयोजनों के लिए अलग-अलग रास्ता तलाश रहे हैं। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल अपने वोटबैंक का आधार बढ़ाने के लिए अलग-अलग आयोजनों की रूपरेखा पहले ही तैयार कर चुके थे।जातीय सम्मेलनों पर प्रतिबंध का आदेश जारी होने के बाद अब आयोजनों का नाम बदल कर कार्यक्रम करने का प्लान बनाया है। वहीं छोटे दलों की उलझनें बरकरार हैं।
सपा अलग-अलग समाज को जोड़ने की योजना के तहत जातियों के सम्मेलन करवाने की योजना बनाई थी।इन्हीं तमाम योजनाओं में से एक हिस्सा गुर्जर चौपाल लगवाने का था। जब से जातियों के सम्मेलन करवाने पर रोक लगाने के आदेश आए, उसके बाद से इन सम्मेलनों का नाम पीडीए सम्मेलन कर दिया गया है।सपा प्रवक्ता राजकुमार भाटी इन चौपालों के आयोजक हैं।भाटी ने इस बार चुनाव न लड़ने के बजाय गुर्जर समाज को सपा के साथ जोड़ने की योजना तैयार की है। नाम बदलने के बावजूद शुरुआती कुछ आयोजनों की प्रशासनिक अनुमति न मिलने के बाद अब इस तरह के आयोजन हो रहे हैं। सपा ने नवंबर में गुर्जर रैली की भी योजना बना रखी थी, जिसे अब बदलकर पीडीए एकता रैली या इससे मिलते-जुलते नाम से आयोजित किया जाएगा।
कांग्रेस ने भी पासी समाज को पार्टी के साथ जोड़ने की योजना पर काम करना शुरू किया है।तमाम छोटे-छोटे आयोजनों के बाद 25 दिसंबर को बड़े पैमाने पर पासी सम्मेलन करवाने की योजना थी। कार्यक्रम के संयोजक सचिन रावत कहते हैं कि अब जबकि सरकार ने इस तरह के आयोजनों पर रोक लगा दी है तो अब वह आयोजन सामाजिक क्रांति सम्मेलन के नाम से होगा।सचिन कहते हैं कि महराजा बिजली पासी की जयंती के अवसर इसे आयोजित किया जाएगा। वहीं सूत्रों की मानें तो बहुजन समाज पार्टी ने अपनी इकाइयों को निर्देश दे दिए हैं कि वे जातियों के सम्मेलनों का नाम बहुजन सम्मेलन रखा जाए।
अपना दल (सोनेलाल), निषाद पार्टी, सुभासपा और अपना दल (कमेरावादी) सरीखे के राजनीतिक दल इस आदेश के बाद काफी उलझन में हैं। दरअसल इन दलों की पूरी राजनीति ही कुछ जातियों के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है। अब ऐसे में आयोजनों पर रोक के बाद इनकी रणनीति क्या होगी, यह देखना दिलचस्प होगा। पश्चिम उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल भी इसी तरह के दलों में शामिल है। हालांकि पार्टी जाटों के अधिक सम्मेलन नहीं करती है।