प्रतापगढ़ की राजनीति घूमती रही राजघरानों के ही इर्द-गिर्द, किंग क्यों बन रहे अब किंगमेकर
प्रतापगढ़ की राजनीति घूमती रही राजघरानों के ही इर्द-गिर्द, किंग क्यों बन रहे अब किंगमेकर

24 May 2024 |  226



ब्यूरो देवीशरण मिश्रा


प्रतापगढ़।उत्तर प्रदेश में बड़के जिले में शुमार प्रतापगढ़ की राजनीति राजघरानों और सवर्ण समुदाय के इर्द-गिर्द घूमती रही है।राजघरानों से अगर सीट बाहर गई तो ठाकुर और ब्राह्मण का ही कब्जा रहा।प्रतापगढ़ में सिर्फ दो बार गैर सवर्ण सांसद बन सका।प्रतापगढ़ में अब तक हुए 16 चुनाव में 11 बार राजघरानों ने कब्जा जमाया।सबसे ज्यादा सांसद ठाकुर हुए हैं,लेकिन पहली बार है न कोई राज परिवार से चुनाव लड़ रहा और न ही कोई ठाकुर चुनावी मैदान में है।इस तरह से प्रतापगढ़ में पहली बार किंग किंग मेकर की भूमिका में दिख रहे हैं।

प्रतापगढ़ लोकसभा से भारतीय जनता पार्टी ने अपने मौजूदा सांसद संगम लाल गुप्ता पर फिर भरोसा जताया है।संगम लाल गुप्ता के सामने समाजवादी पार्टी के एसपी सिंह पटेल और बहुजन समाज पार्टी प्रथमेश मिश्रा है।भाजपा को अपना दल (एस) का समर्थन मिला है तो सपा से कांग्रेस का गठबंधन है। बसपा अकेले चुनावी मैदान में ताल ठोंक रही है।प्रतापगढ़ में अहम भूमिका निभाने वाली जनसत्ता दल लोकतांत्रिक पार्टी के मुखिया कुंडा विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया का कोई भी प्रत्याशी चुनावी मैदान में नहीं है। राजा भइया ने अपने समर्थकों को अपनी मर्जी से वोट डालने के लिए कह दिया है।

हाल ही में संगम लाल गुप्ता ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमारा विरोध इसलिए हो रहा है क्योंकि मैं तेली समाज से आता हूं।राजाओं के गढ़ में किसी तेली को सांसद नहीं बनने देना चाहते हैं,क्या क्षत्रिय ही यहां से सांसद बनेगा।इससे पहले केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने कुंडा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि अब राजा किसी रानी के पेट से पैदा नहीं होता हैं बल्कि ईवीएम से पैदा होता है। इन दोनों बयान का कौशांबी में ही प्रभाव नहीं पड़ा बल्कि प्रतापगढ़ का भी सियासी समीकरण बदला हुआ दिख रहा है।

किस पार्टी का प्रतापगढ़ में रहा दबदबा

प्रतापगढ़ लोकसभा 1957 में अस्तित्व में आई है।इससे पहले इसका बड़ा हिस्सा फूलपुर लोकसभा के तहत आता था। प्रतापगढ़ लोगों बनने के बाद से अभी तक 16 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं। 9 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है,एक बार सपा और दो बार भाजपा जीती है। इसके अलावा अपना दल, जनसंघ और जनता दल ने एक-एक बार जीत दर्ज की है।इस तरह प्रतापगढ़ लोकसभा में लंबे समय तक कांग्रेस का दबदबा रहा,लेकिन मोदी लहर में पहले अपना दल (एस)‌ने जीत दर्ज की अब भाजपा के पास है।

प्रतापगढ़ में राजघराने का रहा वर्चस्व

प्रतापगढ़ लोकसभा में 16 लोकसभा चुनाव में 11 बार राज परिवार से जुड़े सदस्य जीत दर्ज करने में सफल रहे थे।इससे प्रतापगढ़ की राजनीति में राजघरानों-रियासतों की भूमिका को समझा जा सकता है।कालाकांकर राजघराने के राजा दिनेश सिंह चार बार सांसद बने। राजा दिनेश सिंह की बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह तीन बार सांसद बनी।प्रतापगढ़ राजघराने के अजीत प्रताप सिंह दो बार और उनके बेटे अभय प्रताप सिंह एक बार सांसद बने।अजीत प्रताप सिंह पहली बार जनसंघ से जीत दर्ज की और उसके बाद कांग्रेस के टिकट पर, जबकि अभय प्रताप सिंह ने 1991 में जनता दल से जीत दर्ज की थी।जामो रियासत से जुड़े अक्षय प्रताप सिंह गोपाल जी एक ही बार जीत दर्ज कर सके।

प्रतापगढ़ में सिर्फ दो बार ओबीसी सांसद चुने गए

आजादी के बाद 1957 में बनी प्रतापगढ़ लोकसभा में पहली बार कांग्रेस से मुनीश्वर दत्त उपाध्याय जीतकर संसद पहुंचे थे। 1962 में दूसरे चुनाव में जनसंघ से अजीत प्रताप सिंह ने जीत दर्ज की थी।इसके बाद 1971 में कांग्रेस से राजा दिनेश सिंह ने जीत दर्ज की थी।आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी के रूपनाथ सिंह यादव मैदान में उतरे और राजा दिनेश सिंह को हरा दिया।प्रतापगढ़ लोकसभा में पहली बार कोई ओबीसी सांसद चुना गया था,लेकिन उसके बाद 2019 में लगभग 42 साल के बाद ओबीसी समाज से आने वाले भाजपा से संगम लाल गुप्ता ने जीत दर्ज की।

प्रतापगढ़ में ठाकुरों का दबदबा

प्रतापगढ़ लोकसभा से अभी तक हुए 16 चुनाव में दो बार मुनीश्वर दत्त उपाध्याय सांसद बने, जबकि 12 बार ठाकुर सांसद रहे। 1962 और 1967 अजीत प्रताप सिंह ने जीत दर्ज की।इसके बाद 1971 में राजा दिनेश सिंह ने जीत दर्ज की।राजा दिनेश सिंह लगातार दो बार जीतकर विदेश मंत्री बने। 1980 में अजीत सिंह जीत दर्ज करने में सफल रहे, लेकिन 1984 में कांग्रेस ने फिर से दिनेश सिंह को मैदान में उतारा तो लगातार दो बार जीत दर्ज की। 1991 में जनता दल से राजा अभय प्रताप सिंह ने जीत दर्ज की। 1996 में राजकुमारी रत्ना सिंह प्रतापगढ़ से जीत दर्ज करने वाली पहली महिला सांसद थीं। 1998 में भाजपा से राम विलास वेदांती ने जीत दर्ज की।1999 में राजकुमारी रत्ना सिंह जीत दर्ज की, लेकिन 2004 में सपा से अक्षय प्रताप सिंह गोपाल जी ने जीत दर्ज की। 2009 के चुनाव में कांग्रेस से रत्ना सिंह जीत दर्ज की। 2014 में कुंवर हरिबंश सिंह ने जीत दर्ज की।इस तरह प्रतापगढ़ लोकसभा से 12 बार ठाकुर सांसद बने।

प्रतापगढ़ का बदला सियासी मिजाज

पूर्वांचल में सई नदी के बीच प्रतापगढ़ का राजनीतिक मिजाज बदल गया।दलित, ब्राह्मण और ओबीसी मतदाता बहुल वाली प्रतापगढ़ लोकसभा की राजनीति सियासी प्रयोगों और बदलावों के दौर से गुजर रही है।पहली बार है कि प्रतापगढ़ लोकसभा में न ही कोई राजा चुनावी मैदान में उतरा है और न ही ठाकुर कोई प्रत्याशी है। भाजपा ने 2019 में संगम लाल गुप्ता को टिकट देकर प्रतापगढ़ लोकसभा में ठाकुर और राजा घराने के वर्चस्व को तोड़ने में सफल रही थी। तेली समुदाय से आने वाले संगम लाल गुप्ता 2019 के चुनाव में कांग्रेस से राज कुमारी रत्ना सिंह और जनसत्ता दल के अक्षय प्रताप सिंह गोपाल जी को हराने में कामयाब रहे थे। भाजपा ने एक बार फिर से संगम लाल गुप्ता पर भरोसा जताया है।संगम लाल गुप्ता के खिलाफ सपा ने एसपी सिंह पटेल और बसपा ने प्रथमेश मिश्रा को मैदान में उतारा है। एसपी सिंह पटेल की कोशिश कुर्मी, यादव, मुस्लिम और ओबीसी वोट बैंक के सहारे जीत दर्ज करने की है, तो संगम लाल गुप्ता पूरी तरह से मोदी-योगी के सहारे जीत दर्ज करने की है।बसपा के प्रथमेश मिश्रा ब्राह्मण और दलित समीकरण के सहारे अपनी जीत की आस लगाए हुए हैं। संगम लाल गुप्ता के बयान से बदले प्रतापगढ़ के सियासी समीकरण में ठाकुर वोटर निर्णायक भूमिका में नजर आ रहे हैं।

प्रतापगढ़ की सियासत के धुरी

प्रतापगढ़ की राजनीति की धुरी कांग्रेस के दिग्गज नेता राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी,कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भ‌इया और राज कुमारी रत्ना सिंह मानी जाती हैं।इसके अलावा राम सिंह और डॉ. एसके पटेल जैसे कुर्मी विधायक भी अपनी एक अलग राजनीतिक अहमियत रखते हैं।अपना दल (एस) की मुखिया केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल का कुर्मियों के बीच दबदबा रहा है, लेकिन डॉ. एसपी सिंह पटेल के उतरने के बाद कुर्मी समुदाय उनके पीछे लामबंद दिख रहा है।प्रमोद तिवारी प्रतापगढ़ में ब्राह्मण चेहरा माने जाते हैं।राजा भइया से लेकर रत्ना सिंह और मोती सिंह की ठाकुर वोटरों में पकड़ मानी जाती है।प्रमोद तिवारी का रामपुर खास विधानसभा में एकछत्र राज है।यहां ब्राह्मण से लेकर मुस्लिम और दलित तक प्रमोद तिवारी के साथ खड़ा दिखाई देता है। इसके अलावा प्रमोद तिवारी की प्रतापगढ़ सदर,विश्वनाथगंज और रानीगंज के ब्राह्मणों में भी ठीक-ठाक पहचान है।कांग्रेस का सपा के साथ गठबंधन होने से प्रमोद तिवारी पूरी मशक्कत के साथ एसपी सिंह पटेल को जिताने के लिए जुटे हैं।

प्रतापगढ़ में जातीय समीकरण

प्रतापगढ़ लोकसभा में सबसे बड़ी संख्या दलित मतदाताओं की है।लगभग 18 प्रतिशत दलित है,16 प्रतिशत कुर्मी, 17 प्रतिशत मुस्लिम और 12 प्रतिशत यादव, 13 प्रतिशत ब्राह्मण हैं। लगभग 11 प्रतिशत ठाकुर वोटर हैं, 13 प्रतिशत अन्य समुदाय के वोटर हैं,जिनमें मौर्य, पाल और वैश्य समुदाय सहित अन्य बिरादरी हैं।जातीय समीकरण के लिहाज से प्रतापगढ़ लोकसभा में सपा का पलड़ा भारी दिख रहा है, लेकिन संगम लाल गुप्ता पीएम मोदी के नाम और अनुप्रिया पटेल के भरोसे जीत दर्ज करने की आस लगाए हैं। बसपा दलित-ब्राह्मण समीकरण बना रही है, लेकिन भाजपा और सपा के बीच सीधी लड़ाई होने से बसपा पिछड़ी दिख रही है।

प्रतापगढ़ लोकसभा में पांच विधानसभा हैं। इसमें रामपुर खास,विश्वनाथगंज,प्रतापगढ़ सदर,पट्टी और रानीगंज है।मौजूदा समय में रामपुर खास कांग्रेस के पास,विश्वनाथगंज अपना दल के पास और पट्टी और रानीगंज सपा के पास हैं। प्रतापगढ़ सदर भाजपा के पास है। इस तरह सपा और कांग्रेस के साथ आने पर भी एसके पटेल भारी पड़ते हुए दिख रहे हैं। प्रतापगढ़ लोकसभा में ठाकुर और कुर्मी वोटरों के साथ-साथ ब्राह्मण वोटर काफी निर्णायक भूमिका में हैं।राजा भइया के समर्थकों ने अगर कौशांबी की तरह प्रतापगढ़ में भी सपा का साथ दिया, तो फिर भाजपा के लिए प्रतापगढ़ लोकसभा बचाए रखना मुश्किल हो जाएगा।

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